मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

विरक्ति

दुनिया की ठेस मोह भंग कर देती है।
अपनो की उदासीनता नयी राह दिखाती है।

कब कहां कौन किससे अलग होता है
एक जन्म में कौन नया जन्म लेता है।

मनुष्य जो अपनी अन्तरआत्मा से पहचान कर लेता है।
संसार से विरक्त होकर एक नया अध्याय शुरू करता है।

दुख दर्द के बाद की विरक्ति पहाड़ो की कन्दराओं तक पहुंचती है।
खुद से विरक्ति ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम बनती है।

युगों युगों में कोई विरला ही ऐसा इतिहास रचता है।
उसे कोई यीशु, तो कोई बुद्ध के नाम से जानता है।

 

जीवन में कुछ क्षण ऐसे आते है जब मनुष्य पहले संसार से और फिर खुद से विरक्त होने लगता है ..आखिर ऐसा क्यों होता है..कौनसी शक्ति हमें अपनी और खींचती है क्या ये अधिकांशतः साधारण मनुष्य के जीवन के अंतिम चरण में ही होता है ... क्या विरक्ति लोभ, मोह,न्याय, अन्याय,आशा,निराशा का बंधन समाप्त कर देती है ..आखिर इसकी आवश्यकता क्या है..क्या ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग विरक्ति से होकर जाता है ...क्या प्रकाश में लीन होने से पूर्व अंधकार का ख़त्म होना ज़रूरी है ...या फिर प्रकाश अंधकार को लील लेता है ..क्या किसी उपदेश से किसी मनुष्य की आसक्ति को विरक्ति में बदला जा सकता है जैसे रत्नावली के उपदेशो ने तुलसीदास की  आसक्ति को विरक्ति में परिणित कर दिया ..क्या कलिंग युद्ध में नरसंहार को देखकर अशोक की युद्ध से विरक्ति हुई और उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया जैसे क्रोंच वध की घटना से रत्नाकर को दस्युकर्म से विरक्ति हो गई।

 

Ishwarprapti,virakti,Alienation,Moksh,Creativewriting,blogसत्य तो ये है की शमशान की विरक्ति को वास्तविक विरक्ति नहीं कहा जा सकता।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

शिकायत

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जैसा लोग सोचते हैं हम वैसे तो नहीं
इतना खुलने की हमे जरूरत भी नहीं

खुली किताब क्यों बने उनके लिए

जिनके लिए हम कुछ भी नहीं


मन में क्यों उचाट हो उनके लिए
जिन्हे हमारे इन्सान होने की खबर ही नहीं 


पत्थर है हम भी हलचल की हमें खबर ही नहीं
अपने सम्मान के लिए जीना सब चाहते हैं
एक तुम ही उस आवरण में पोशीदा तो नहीं

बुधवार, 21 दिसंबर 2016

मेरे आंगन की वंश बेल

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बरस पर बरस बीत गए एक बेल को पलते आंगन में
कभी बढती कभी थोड़ा रूक कर बढती ये स्नेह बेल
कीड़ो और बिन बुलाई ऋतुओं से बचती ये अमर बेल
लम्बे अर्से से क्यों कुम्हलाई हुई है मेरी भाग्य संगिनी ये
सुबह सवेरे खिलखिलाकर हँसती थी जो आगंन मे बेल
कैसी आहट किसकी नफरत में अब जलती हो रानी बेल
सबको संबल देनेवाली,पीड़ा सबकी हरने वाली बेल
किसकी नज़र से तुम ढल रही हो मेरी साथी बेल
एक पौध तुम्हारी अब बढने लगी है बाबूजी की बेटी के घर
प्यार बंटा,वहां कुछ ज्यादा वक्त बिता वो लौटे कहां
घर भूले,घर का आगंन भूले और भूल गए वो रानी बेल

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

सब कुशल मंगल तो है !


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गांव में हवा के साथ सूकून भी बहता है।
मन मस्तिष्क को फिर एक बार रवां कर लो
यहां निराशा को सूरज की गर्मी पिघला देती है
अब चाहो तो आशाओं से सुलह कर लो
बावड़ी में पानी का स्तर कम ही सही
पर प्यास बुझती है फिर भी सबकी यही
शहर में हजार चीखो
का जवाब नहीं मिलता
यहां सांस की आवाज भी असर दिखाती है ।
गांव में रूह के साथ जीते है सभी
शहर में आत्मा को मारकर आगे बढ़ रहे है सभी
जिन्दा तो शहर मे सारे नज़र आते है
पर गांव में जिन्दगी नज़र आती है 

गांव का घर दुनिया की हर खूबसूरत जगह से सुन्दर है सुबह छत की मुन्डेर से होते हुए सूरज की किरन का मेरे कमरे की खिड़की से अन्दर आना।दूर कही ईश्वर की अरदास में बजती मंदिर की घंटिया सुबह में नयी ऊर्जा भर देती है।पक्षियों की चहचहाहट जो अब बड़े शहरो मे सुनाई देना लगभग खत्म सी हो गयी है।मन को अन्दर तक ताजगी से भर देती है।आज भी जब शहर की भीड़ में गुम होने लगती हूं तो मन गांव की ओर भागता है बड़ी से बड़ी परेशानी से ऊबार देने की ताकत है मेरे गांव के घर मे, फिर क्यों हम शहर बसाते हैं जहां कोलाहल है भागदौड़ है और सबको पीछे छोड़ शहर की सबसे ऊँची इमारत पर घर बनाने की तमन्ना, जहां से आसमान साफ दिखाई दे भाई ये तो गांव के घर से भी साफ दिखता था।एक घर को हटा कर बिल्डिंग बनाना कौनसी समझदारी का काम है इससे बेहतर तो ये होता की कुछ वक्त मैं अपनो के बीच गुजारती  मेरे गांव के घर में जहां सांस की आवाज भी निकलती तो पड़ोसी पूछते सब कुशल मंगल तो है

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

मेरे अपने

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दर्द की भाषा कौनसी होती है
क्या ये सिर्फ मेरे अपनो को समझ आयेगी
तो अपनो की पहचान क्या है
क्या अपनों पर किसी रिश्ते का टैग होता हैं
कब किस मौसम मे मिलते है ये अपने
किस गली, किस मौहल्ले मे बसते है ये अपने
ढूंढो तो मिलते नहीं
गलती से इनका घर मिल भी  जाए तो
अक्सर ताले ही मिलते है वहां
होश संभालो तो जीवन के हर मोड़ पर अनेक रिश्तो से पहचान होती है  पर एक रिश्ता जिससे जीवन मिलता है  वही एक सच्चा रिश्ता होता है ।मां बच्चे के रिश्ते में कोई खोट नहीं होती। खुशनसीब है वो जिनके पास मां होती है। वरना प्यार क्या होता है कभी समझ नहीं पाते।लडकियों के लिए मुश्किले कुछ ज्यादा होती है अचानक अनजान शहर, अनजान लोगो के बीच अपनी जमीन ढूँढती है तो वो और अक्सर उम्र पूरी हो जाती है पर तलाश पूरी नहीं होती। सिर्फ सेवा का मेवा चाहिए बहू से ससुराल वालो को बाकी उनके अपने तो खून के ही रिश्ते है।
सुना है खून के रिश्ते बड़े मजबूत होते है पर अखबारो की सुर्खियां तो कुछ और ही कहती है थोड़े से पैसो में बिकते है प्रगाढ़ रिश्ते। जिस पर जितना ज्यादा यकीन होगा उससे उतना ज्यादा धोखे की आशंका।
फिर भी एक उम्मीद ता उम्र रखना दोस्तो कही ना कहीं रिश्तो में विश्वास अब भी जिन्दा है बस नज़र से ओझल है अभी। बादल छटने दो धूप खिलने दो फिर जो मिले उस खूबसूरत रिश्ते को संभालकर संजोकर रखना दोस्तो।

मंगलवार, 29 नवंबर 2016

Boss का सपना

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समाज के गरीब वर्ग की आवाज़ बनने का सपना देखा
उसे साकार करने का दृढ निश्चय किया और फिर शुरू हुई कठिन यात्रा
पहले पड़ाव का सवाल आखिर जन जन की आवाज़ कैसे बनेगा चैनल
शुरू की प्रदेश यात्रा हर गांव कस्बे में जनता से की बात
एक तरफ सही खबर और जनता का हित और दूसरी तरफ आधुनिकतम चैनल के लिए लेटेस्ट उपकरण की आवश्यकता
मकसद एक ऐसा चैनल तैयार करने का जिसे खुले दिल से अपनाया जाये
चैनल जो किसी व्यक्ति विशेष या समूह का न होकर जनता का हो
जहाँ समस्या उठे तो समाधान के लिए
जहाँ मेरे प्रदेश के लोग बेबाक रख सके अपनी बात
जहाँ व्यर्थ वार्तालाप नहीं प्रगतिशील राजस्थान की हो बात
आगाज़ हो चुका है पर अभी छूना है हमें पूरा आसमान

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

ज़िन्दगी से दूर ज़िन्दगी की ओर

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ज़िन्दगी से दूर  ज़िन्दगी की ओर


और कितनी दूर चलना है अभी..हर कदम पर सांस उखड़ती है जीने की उमंग नहीं बाक़ी ..दर्द घुटनो से ज्यादा कुछ नहीं मिल पाने का है ...मलाल बेटे का भविष्य ना बन पाने का है ..उसकी गृहस्थी ना बस पाने का है ..ख्वाहिशे हज़ार थी जिंदगी से... उधार लेकर जोड़ा भी बहुत कुछ था अब खर्च करने का वक्त लगभग ख़त्म हो गया है पर वो वजह अभी हासिल नहीं हुई..क्यों वास्तविकता जानते हुए भी अपनों के समझाते हुए भी हम ये नहीं समझते पूत कपूत तो क्यों धन संचय पूत सपूत तो क्यों धन संचय ...बेटे का मोह भारत में महिलाओ के अंतस में बसा  है हर कदम पर सबसे बचाते हुए जिस बेटे को वो अपने आँचल में सुरक्षित रखना चाहती है वो कब माँ के साथ आँख मिचोली खेलते हुए ओझल हो जाता है बेचारी माँ समझ ही नहीं पाती..बेटा बड़ा हो गया! उम्र से बड़े दोस्त उसे माँ के सपनो में सजाई दुनिया से दूर ले गए नए शौक नए रंग नया माहौल असर छोड़ गया ..बचपन से सीचें संस्कारो को ये सिगरेट का धुंआ निग़ल गया..

जवान होते पौधे को कीड़ा लग रहा था और माँ तब भी खामोश थी चिंतित थी पर सोचती थी बेटा बड़ा हो गया है अपने बेटे पर ज़रूरत से ज्यादा भरोसा किया और खुद को कई बार परिवार में रुसवा किया पर बेटे का साथ नहीं छोड़ा ..परिवार के दायरे से शिकायते निकलकर मोहल्ले में बढ़ने लगी ...पडोसी की जासूसी खटकती तो है पर बड़े काम की होती है ..इसमें जलन से ज्यादा हित छुपा होता है ये वक्त निकलने पर पता चलता है! पापा बेटे को कंप्यूटर इंजीनियर बनाना चाहते थे तो फीस भरने के लिए खुद को परिवार से दूर कर लिया जो ट्रांसफर वो ज़िम्मेदारियों को निभाने के चलते नहीं लेना चाहते थे उसे बेटे के भविष्य के लिए स्वीकार कर लिया! लाखो की फीस पर पानी फेर कर पिता के क्रोध से बचता बेटा छुप गया एक बार फिर माँ के आँचल में..इस आँचल के सुरक्षा कवच से तो यमराज भी हार मान लेते है पिता ने लाख समझाया माँ ने एक न सुनी! बेटे का भरोसा बढ़ता गया..कामचोरी आलस के साथ इस आँचल में छिप जाना आसान है   यही से भविष्य की सीढियो ने पर्वत की ऊंचाई नहीं लाडले का कुँए में गिरने का रास्ता पक्का कर दिया..हालात बिगड़े  माँ उम्र के आखिरी पायदान पर है बीते वक्त को कोसती है अपने प्यार पर लानत भेजती है और अपने लिए ज़िन्दगी नहीं मौत की दुआए मांगती है उसका बेटा अब ना घर मिलने आता है ना माँ के आँचल में दुनिया से बचने के लिए जगह ढूंढता है...कहाँ है उसका लाड़ला जिसे एक नज़र देखने के लिए माँ अब भी एक और ज़िन्दगी जीना चाहती है पर इस बार दिल में प्यार और हाथ में डंडा रखना चाहती है सिर्फ लाडले के सुखद भविष्य के लिए..

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

स्याही

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वक्त की स्याही दिखती नहीं, कहती बहुत कुछ है
बीते हर दौर के पन्ने ख़ाली सही, समझाते बहुत कुछ है
धर्म क्षेत्र कैसे बना रण क्षेत्र,अनुभव ग्रंथो में वर्णित है
समय के साथ बनते मिटते साम्राज्यो के किस्से अमिट है
जाँच लो स्याही हर दौर की एक है
वक्त के साथ मिट जाते है अस्तित्व सभ्यताओं के
रह जाते है वक्त की रेत पर निशान स्वतः स्याही के

सोमवार, 21 नवंबर 2016

ये कैसे रिश्ते

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वो जो दर्द देकर चले गए
क्या वो मेरे अपने है
या जो दर्द बनकर साथ जीते है
वो मेरे अपने है
सिर्फ मतलब के लिए मुझको पूछते है वो
दर्द की रात ढलते ही कहते है अब चलते है
बड़े चतुर है रिश्ते सारे
मेरी इंसानियत को बार बार परखते है 

कश्मकश

ज़िन्दगी के वो तार जो मीठी धुनें सुनाते थे वो कब के टूट चुके अब तो हर रोज खट पट की आवाज़ से दिन निकलता और डूबता है...एक गहन उदासी उसके मन में छायी रहती है पंख कटने का अहसास जीने की आरज़ू को ख़त्म करता रहता है और तमाम ऐश ओ आराम के बावज़ूद भी मेरी सहेली माधवी खुश नहीं थी..सुबह के पांच बज चुके है नींद के बाद भी सिर में भारीपन है ...माधवी का चेहरा आँखों के सामने घूम रहा है रात जब उससे मिली थी तो उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे पता नहीं किस हाल में होगी वो ...मन में बड़ी अजीब सी उथल पुथल हो रही थी दिल में बार बार दोस्त की खैरियत जानने की इच्छा थी पर इतनी सुबह फ़ोन करना उचित नहीं लगा और थोड़ा रुकने का फैसला ले मैंने ईश्वर से उसकी सलामती कि प्रार्थना की..खिड़की से पर्दा खीचा तो सूरज कि लालिमा अपना आँचल फैला रही थी बाहर का नज़ारा बेहद सुकून देने लगा कुछ देर वही ठिठक गयी  मन कि तमाम परेशानियों से कुछ राहत मिली ...ठंडी हवा के झोके ने जीने कि नयी ऊर्जा दी ...पक्षियों कि चहचहाट आज कुछ ज्यादा ही अच्छी लग रही थी ...लग रहा था जैसे दिलासा दे रही हो..चलो कुछ तो अच्छा है इस सुबह में ..मम्मी को चाय ठीक छः बजे पीनी होती है और अब तक मैं अपने ही विचारो मैं मगन थी ..जल्दी जल्दी बिस्तर समेटे और बाथरूम कि तरफ भागी...पूजा के बाद मम्मी को चाय पूछने कमरे तक पहुची ही थी कि फ़ोन घंटी बज उठी..घबराहट ने फिर मुझे जकड लिया ..चाय की प्याली माँ को देते ही फ़ोन का रुख किया ...माधवी की आवाज़ भर्रायी हुई थी ..बार बार मिलने की ज़िद कर रही थी बस एक ही बात कह रही थी अब नहीं सहा जाता ...बड़ी मुश्किल से उसको दिलासा दिया और मिलने का वादा कर मैंने फ़ोन रखा

क्या हो गया मेरी हमेशा मुस्कुराते रहने वाली दोस्त को ...आखिर क्यों बार बार मरने की बातें करती है ..कॉलेज के दिन कैसे भूल जाऊ क्लास में हर कॉमपीटीशन में आगे रहने वाली माधवी अब ज़िन्दगी से हार मान रही है..वो लड़की जिसकी एक झलक के लड़के दीवाने हुआ करते थे कॉलेज के बाहर लाइन लगाए रहते थे औऱ वो  स्कार्फ़ लगा कॉलेज से छुप कर निकल जाया करती थी ..कोई लड़का अब तक उसका दोस्त नहीं था ...न जाने कब और कहाँ वो शिशिर से मिली और अपने आप से अलग हो गई ..कॉलेज की पढाई के बाद मैं इंटर्नशिप में बिजी हो गई और माधवी का परिवार  पटना शिफ्ट हो गया ..पहले फ़ोन पर लंबी लंबी चर्चाये होती थी दिन की हर छोटी बड़ी बात हमारी टेलीफोनिक मीटिंग का हिस्सा होती पर न जाने कब ये चर्चाए सिर्फ साप्ताहिक हाय हेल्लो में तब्दील हो गई पता ही नहीं चला..यहाँ तक की  कुछ साल पूरी तरह संपर्क टूट गया ...जिसकी वजह एक नया रिश्ता था जिसकी भनक माधवी ने कभी नहीं लगने दी ..रात माधवी ने जो बताया वो मेरे लिए अजीब इसलिए भी था क्योकि माधवी लड़को से दूर रहा करती थी फिर शिशिर ने कैसे उससे ऐसा रिश्ता बनाया जिसे वो खुद निभाना ही नहीं चाहता था ..ये लड़को की छोटी मोटी मदद और लड़की का उसपर धीरे धीरे  निर्भर होना कितना भयावह हो सकता है ये माधवी से बेहतर कौन जान सकता है ..

पटना मे एक विज्ञापन एजेंसी में माधवी ने पार्ट टाइम जॉब ज्वाइन कर लिया था और यही सेल्स डिपार्टमेंट में शिशिर काम करता था उनकी फीमेल बॉस का टॉर्चर टीम को तोड़ रहा था ...परेशान सेल्स टीम फील्ड में न जाकर चाय की थड़ी पर दिन बिताती और यही हुई मुलाकात माधवी और शिशिर की ...माधवी की सरलता किसी को भी आकर्षित करने के लिए काफी थी नए शहर में एक अच्छे दोस्त की तरह था शिशिर ...ऑफिस की बातें से  पर्सनल बातो का दौर कुछ एक आध महीनो में शुरू हो गया था ..शिशिर के रिश्ते की बात चल रही थी और इधर इन दोनों का रिश्ता आगे बढ़ रहा था ...चाय की थड़ी से मुलाकाते शिशिर के फ्लैट में शिफ्ट हो गयी  ..दोस्त के साथ पार्टनरशिप में लिया था उसने फ्लैट और यही माधवी शिशिर रिश्ता गहरा हुआ ..माधवी ने बताया की मन कचोटता था पर दिल एक न सुनता था और वो बस खिंचती चली गयी ..शिशिर माधवी से अलग नहीं होना चाहता था और तृष्णा को वो माँ पिताजी की वजह से अपनाना चाहता था ...ये कैसा रिश्ता बन रहा था आखिर क्यों में उस वक्त अपनी दोस्त के साथ नहीं थी ...वो आज भी शिशिर को गलत नहीं मानती बस खुद को दोष देती है कहती है जीना नहीं चाहती ...

ग्यारह बजते बजते रोज़मर्रा का  काम पूरा किया ऑफिस फ़ोन करके ना आने की सूचना दी और सीधे माधवी के घर का रुख किया...दरवाज़े की घंटी बजाते हुए हाथ कांप रहे थे की क्या दिलासा दूंगी माधवी को .. इस मोहपाश से मुक्त होने का कौनसा रास्ता दिखाऊ ..दरवाज़ा शिशिर ने खोला था ...जिसकी सिर्फ तस्वीर अभी तक मैंने देखी थी और मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी पर अचानक यूँ माधवी के घर मिलना होगा ये ना सोचा था ...उसकी हाय को इग्नोर करते हुए मैं सीधा माधवी की ओर बढ़ी...वो सोफे पर बैठी थी ..रात को जो माधवी मिली थी उससे बिलकुल अलग ...होठो पर पहले जैसे मुस्कान ..आँखे सूजी हुई थी पर अब इनमे चमक थी...समझ नहीं आ रहा था शिशिर को थैंक यू कहूं या गाली दूँ...पर इस वक्त तो मेरी सहेली की जीने की तमन्ना लौट आयी थी ओर मैं उन पलो को उससे छीनना नहीं चाहती थी ...

क्रमशः .. 

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

रुत बदल गई

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चिकनगुनिया को 500  का नोट निगल गया
 डेंगू को 1000  का नोट ....
हवा कितनी बदल गयी है
वायरस को नोटों की माया ने हवा कर दिया
मोदीजी के छोड़े वायरस ने अमीरो को दिलदार बना दिया
पैसे को जहां तहा से खीच लेने वाला अमीरी  पंप
अब नोट बॉटने की बात करता है
ये नयी रुत क्या गुल खिलाएगी
नोटों के पतझड़ के बाद अब कौनसी बहार आएगी 

रविवार, 13 नवंबर 2016

हमारी फ़िल्मी ज़िन्दगी

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असल ज़िन्दगी में रील लाइफ का असर दिखने लगा है
सीधी सरल तो कभी मुश्किल राह के सफर में
ग्राफिकल इफ़ेक्ट नज़र आ ही जाता है
बातें कम होने लगी है संवाद कुछ ज्यादा
हर गली नुक्कड़ से एंग्री एक्शन की खबरे रोज मिलती है
दोस्तों की मत पूछिये घर मिलने आते नहीं
साथ विदेश घूमने के प्लान बनाते है
एक वक्त था सच्चे हमसफ़र के इंतज़ार में ज़िन्दगी गुज़ार दी जाती थी
अब हर गली में उसका एक आशिक बैठा है
जिसके साथ ज़िन्दगी नहीं सिर्फ कुछ समय बिताने की तमन्ना रहती है
जिन फिल्मो के किरदार इंसान मनोरंजन के लिए गढ़ता था
अब वही किरदार हर इंसान में नज़र आता है

शनिवार, 12 नवंबर 2016

उड़ता पीम

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करेंसी का हाहाकार मचाकर
पीएम उड़ गए विदेश में
कालाबाज़ारी का पता नहीं
आम आदमी मर रहे देश में
काम छोड़कर देश की जनता
बिजी हो गई छुट्टे पैसो में
बैंक कर्मचारी बावले हो गए
इस सारी रेलम पेल में

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

ब्रम्हांड में जीवन संचार

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शून्य में ओमकार का वास
जीवित शरीर में आत्मा का वास
माँ के गर्भ में भ्रूण का वास
तपस्वी के मन में इष्ट का वास
शाश्वत में नश्वर का वास
सत्य में असत्य का वास
ब्रम्हांड में यही है जीवन का संचार

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

ख़ुशी के मायने बदल गए है

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ख़ुशी का अर्थ बदल गया लगता है
पहले लोग अपनों की आखो में ख़ुशी ढूंढा करते थे
अब आईने के सामने बुत बनकर खड़े रहते है

ख़ुशी बाँटने वाले भी घर में सीमित हो गए है क्योकि
बुजुर्गो को ओल्ड ऐज होम में छोड़ना फैशन बन गया है
मन ज्यादा मचले तो पुरानी एल्बम का फोटो फेसबुक पर अपलोड होगा 

छुट्टी लेकर परिवार के साथ शॉपिंग का तो ज़माना लद गया है
ऑनलाइन शॉपिंग ने ख़ुशी की buy one get one free के नीचे कब्र जो बना दी है
पाप का हाथ पकड़कर जिद करना भी ख़ुशी का दूसरा नाम है शायद

त्यौहार पर बहाने से पडोसी के घर बेवजह पहुँच जाते थे
अब टीवी पर दिनों दिन बढ़ते चैनल वक्त नहीं देते शायद
ख़ुशी अब मोहल्ले से रूठकर सॅटॅलाइट से ट्रांसफर होती है

सोमवार, 24 अक्टूबर 2016

प्रभु इच्छा,God Wish

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आकाश में छल है
सागर में बल है
धरती पे समर है
पाताल में परत है
सृष्टि की प्रत्येक हलचल में
प्रभु इच्छा निहित है
माया है उनकी कर्म हमारा

शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

अतिथि देवो भवः

 

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अतिथि देवो भवः
भारत की भूमि पर हर घर में यही संस्कार पले
फिर क्यों विदेशी सैलानी हर बार ठगे जाते है
पूरे विश्व में फैली ख्याति जिन संस्कारो की
आज वही पर मैली हो गयी चादर उन संस्कारो की
एक छोटे से हित के खातिर फिर बलि चढ़ गए संस्कार
आखिर कितने छोटे पड गए अपने ही घर में हम आज
राह दिखाने वाले ने राहगीर को लूट लिया
एक रिश्ता विश्वास का था वो भी खुद से छीन लिया

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016

दिवाली



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कितना कुछ बदल जाता है हर साल दिवाली पर

कोई बदले घर का रंग रोगन, कोई बदले सजावट

कही पनपे नयी उम्मीदे,कही सजते नए सपने

खेतो में रबी की  बोई जाती है कहीँ नई फसले

रसोई में महकने लगती है नए धान की खुशबू

बाज़ारो की रौनक देख दंग रह जाते विदेशी सैलानी

दिवाली को भारत की धरती पर जगमग करते लाखो दिए

माँ लक्ष्मी के आशीष से धन धान्य का वैभव ऐसा देख

देवो के देव महादेव भी धरती भ्रमण को निकलते

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

हँसना कब से भूल चुके थे हम

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हँसने की एक वजह कहाँ से लाये
रोज रोज की भागम भाग निराशा ही भर जाये
कोई खींचे, कोई पीछे, जीवन अश्को में ही बीते
हँसना कब से भूल चुके थे हम
फिर एक दिन एक चेहरा ढेरो खुशियां लाया
हफ्ते के दो दिनों को उत्सव समान बनाया
ना अभद्र व्यवहार, ना अशिष्ट ही भाषा
भोले से चेहरे ने रोते को भी हँसाया
सीधी सच्ची बातें जीवन में पल में देते उतार
कुछ घंटो में जग में भर देते कपिल जीने की शक्ति अपार

स्पोर्ट्समैनशिप

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बचपन से सुनते आये है 
जीवन में हार जीत से ज्यादा स्पोर्ट्समैनशिप  है ज़रूरी
 

किन हस्तियों को देखकर कहावत  गई बनायीं
आज के हालात तो कुछ और ही इशारा करते है

स्पोर्ट्स के इंस्टेंट जवाबी संसार ने नए standard किये है तय
खेल की भावना को मारो गोली, ट्विटर हैंडल है सबसे ज़रूरी

बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

करवाचौथ

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कुंडली के सप्तम भाव ने तय किया जो स्नेह मेल
आज के दौर में सुनते,देखते है उसके अजब खेल
इतिहास हो गए राम से पत्नी प्रेमी
और लुप्त हो गयी सती स्वरूपा नारी
कुछ टीवी ने बदला प्यार का अनूठा रिश्ता
जिसमे दिल "पर" नारी पर ही फिसला
कुछ फेसबुक ट्विटर ने किया कमाल
मेल मेल पे  दिल भी बदले,बिल भी बढ़ गए
सात फेरो के बंधन में बंधते थे जो सात जन्म के रिश्ते
अब एक जन्म में बदले नर- नारी  सात आठ भी रिश्ते

हँसना मना है

लड़की मुस्कुराहट पर ताला तो लगा

इस हंसी के अर्थ मुश्किल में डाल देंगें


थोड़ा हंसोगी तो शुरूआत समझी जाएगी


खुलकर हंस दी तो फंस गई ऐलान हो जाएगा


ये पुरूषो की दुनिया के मतलब बड़े मतलबी हैं


तुम हंसोगी दिल से और उसके हौंसले बुलंद होंगे 


अपनी मां बहन को भूलकर पैमाने बनाते हैं

अब सोचो "हंसी तो फंसी"जुमला किसने मशहूर किया

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

श्वेत का समर्पण श्याम को

श्वेत का समर्पण श्याम को
जैसे दिन खो जाए शाम में 

 गोरी राधा का प्रेम श्याम से

जीत को मिले भाव हार से
सफर
का आगाज़ हो मंज़िल

प्रकाश समझ मे ना आए 
बिना अंधकार मे जाए
जीवन की जोत मिल जाए 

आखिर प्रकाश पुंज में

यही है श्वेत का समर्पण श्याम को

सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

"मैं"

"मैं" का जगत बहुत ही छोटा
अक्षर ज्ञान जितना भी हो
इंसान असफल ही होता है
"मैं" की शक्ति कितनी भी हो
"मैं"  की भक्ति कितनी भी हो
इंसान अकेला होता है
"मैं"  ने मारा रावण को
पर मैंने नही मारा मन के "मैं"  को
अब पल पल मैं ही मरता हूं
भीड़ भरे मेले मे मैं बस खुद से बातें करता हूं

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

एक रोटी और बच्चे दो

एक दुखियारी माँ की सुनो
 ये विपदा भारी
रोटी देखकर रोती जाये ..
रोते रोते कहती जाये
एक रोटी और बच्चे दो
कौन रहेगा भूखा आज
 किसे मिलेगी ऱोटी आज
माँ बोली सुन लाडली मेरी
भैया को दे  तोहफा आज
बेटी भूख से तड़पी तो
माँ बोली सुन कहानी रानी
कल जब होगी किसी की शादी
तुझे मिलेगी पूरी भाजी
सपने में दावत भी देखी
लेकिन सुबह तक आस भी टूटी
माँ की लाडली रूठ गयी
प्राण पखेरू छोड़ गयी
आखिर जीती कैसे वो
जिस माँ की पीड़ा ये हो
एक ऱोटी और बच्चे दो

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

नारी मन


अविरल स्वछंद मेरे मन की गंगा बह निकली
वेग मे करूणा का प्रबल आवेग
ज्यो सागर मे उठते गिरते ज्वार भाटा अनेक
कल कल छल छल ज्यू ब्रह्मपुत्र मे अश्रु समावेश
इस नारी मन की पीर की थाह न पाया कोई
बांध बने सरपट कभी तो राह मिले जग को सही