शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

बाबूजी के जाने के बाद




My Father My strength,babuji ke jane ke bad

हज़ार रोशनियों का शहर आज उदास क्यों है
शहर में आज हर चेहरा दिखता जर्द क्यों  है
क्यों अचानक शिथिल हर आवाज़ लगती है
सुबह की ताज़गी भी बोझिल सी महसूस होती है
अब तो पंछियो की चहचहाट शोर सी प्रतीत होती है
क्यों मेरी आँखों से काजल सुबह से धुला सा है
इन आँखों का सूनापन किस चेहरे को ढूंढता है
बगीचे में जाकर देखा तो फूलो का रंग भी कुछ फीका है
रसोई से बर्तनों का शोर अब गायब है
बस बाबूजी की आवाज़ रह रह कर सुनाई देती है
एक प्याला चाय स्पेशल वाला जरा लाना तो बिटिया
अब  कहेगा कौन मुझसे ये,बाबूजी की छड़ी बताना
बगीचे में कबूतरों का झुण्ड इंतज़ार में है
कौन देगा चुग्गा उनको इतने प्यार से, सम्मान से
प्रश्नों के लगे जब अम्बार और मौन हो गए सारे जवाब
दर्द हद से बढ़ता रहा और दिन के उजाले में फैलता रहा
हज़ारो रोशनियां मद्दम पड़ने लगी और दर्द का आकार बढ़ता रहा
मेरे शहर में किसी के न होने का अहसास कितना गहरा है
अभी तक यहाँ दर्द ने सबको ख़ामोशी से बांध रखा है
आसमान की चादर आंसुओ से भीगी जब तक है
मेरे शहर की हर शय अपनी सी लगती रहेगी
रिश्ता तो एक मेरा खो गया है तारों में
फिर मेरा शहर मेरे साथ भला रोता क्यों हैं