Pic Courtesy:Midday
सोना पिघलकर जब शख्सियत में तब्दील होता है
दमक ललाट की अंधेरो में उजाला भर जाती है
पथरीले रास्तो पर चलकर घायल हुए जो इंसान
समय की आँधियो से लड़कर उभरे जो चेहरे
वही दीपक निराशाओ से लड़कर ज्योत जगाते है
लहू और पसीने की कीमत जान कर बनी जो तकदीरे
वही पत्थर तराशकर अब हीरे को आकार देते है
गुमनाम चेहरों को नाम तलाशने में मदद करते है
हाथ से हाथ मिलकर बनता है कुछ ऐसे कारवां
यही रैला चला जीवन की विषमताओं से लड़ने
सफलताएं किसी थाली में सज कर नहीं मिलती
विषमताएं समाज की बिन आवाज़ उठाये नहीं मिटती
कितने दब जाते है नींव की मानिंद
कंगूरे बन जाते है श्रेय के हक़दार
तालियों की गड़गड़ाहट क्या छीन सकती है
किसी दमकते चेहरे की आभा