Courtesy: Patheos.com
ये कैसा शोर है
मौन है पर
अंतर्नाद सुनाई देता है
चेहरा भावविहीन है
दर्द फिर भी दरकता है
शब्दों पर विराम है
कागज़ फिर भी व्यथा कहता है
व्यक्तित्व मज़बूत है जितना
मोम ह्रदय बह रहा है उतना
जीवन में संयम बरता जितना
मौत पर हंगामा बरपा उतना
बेजान शरीर निढाल पड़ा है
सजीव लाशे आस पास मंडरा रही है
सिर्फ एक प्रश्न सामने खड़ा है
आज अग्नि समर्पण किसका है ?
ये कैसा शोर है
मौन है पर
अंतर्नाद सुनाई देता है
चेहरा भावविहीन है
दर्द फिर भी दरकता है
शब्दों पर विराम है
कागज़ फिर भी व्यथा कहता है
व्यक्तित्व मज़बूत है जितना
मोम ह्रदय बह रहा है उतना
जीवन में संयम बरता जितना
मौत पर हंगामा बरपा उतना
बेजान शरीर निढाल पड़ा है
सजीव लाशे आस पास मंडरा रही है
सिर्फ एक प्रश्न सामने खड़ा है
आज अग्नि समर्पण किसका है ?