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खुद में ना पाल हलाहल इतना
रगों में ना दौड़ा ज़हर इतना
कुछ देर बैठ, मुझसे बात कर
सुना क्यों सुर्ख है अक्स मेरा
आईने में आज इतना
ना विष रख, ना विष की यादें
बहा दे अश्रुओं में भीतर भरा ज़हर सारा
मिटा दे विस्मृति, स्मृति पटल से
खोल दे मन के सारे ताले
कर दे दर्द विसर्जित, गंगा नहा ले