मैं ब्रम्हा हूँ जो कहा वही सत्य बाकी सब मिथ्या
अचरज है ये ब्रम्ह ज्ञान कुछ लोगो को विरासत में मिलता है
कलयुग में ये ज्ञान काले चश्मे से बहता है
कुछ यहाँ से सुनो कुछ वहाँ से सुनो फिर मुनादी करो
मनुष्य का अपना सामर्थ्य और ज्ञान यहाँ आवश्यक नहीं
सिर्फ चश्मा काला हो तो आकाशवाणी में परम आनंद हो
आजकल आकाशवाणी फेसबुक पर ज्यादा गूँजती है
सुरो को ललकारने के लिए असुर शक्ति का प्रयोग
दूर से फेंके गए इस प्रक्षेपात्र का असर विज्ञापन के साथ
अंदाज़ नया है पर काला चश्मा वही
काले चश्मे से ना सिर्फ उजाला भी काला नज़र आता है
बल्कि दिमाग का जाला भी नज़र आता है
इंसान खुद को ईश्वर तुल्य समझता है अपनों का अनादर करता है
सच तो ये है पहाड़ी पर बैठा वो भ्रम में जीता है
ज्ञान की गंगा बहाता है और खुद पानी से भी डरता है (अहम् ब्रम्हास्मि )