जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है
स्वछन्द विचार कितने भी हो
घर की चार दीवारी से टकराते है
पाने को सारा खुला आसमान है
खोने को कुछ गज़ का मकान है
थक कर चूर जब हो जाओ
पंखो को विराम भी दो
पीछे छूटे साथी का इंतज़ार भी हो
लौट आओ जब संध्या हो
उड़ने की कोई वजह ना हो
छोटी सी ज़िंदगानी है
अपनों संग भी बितानी है
जीत के तुम संसार को
हार ना जाना परिवार को
मुट्ठी भर दिन जीवन के
कुछ सपनो में, कुछ उड़ने में
बोलो धरती पर लौटोगे कब
रिश्तो की बगिया में महकोगे कब
जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है
छोटी सी उम्र में सपने बड़े
जिनसे सीखा उड़ना उनको क्यों कुचल चले
सूरज तक तुमको पहुँचना है
बादल के संग ही उड़ना है
अनुभव और परिश्रम बिन
जीत का फल भी खट्टा है