जैसा लोग सोचते हैं हम वैसे तो नहीं
इतना खुलने की हमे जरूरत भी नहीं
खुली किताब क्यों बने उनके लिए
जिनके लिए हम कुछ भी नहीं
मन में क्यों उचाट हो उनके लिए
जिन्हे हमारे इन्सान होने की खबर ही नहीं
पत्थर है हम भी हलचल की हमें खबर ही नहीं
अपने सम्मान के लिए जीना सब चाहते हैं
एक तुम ही उस आवरण में पोशीदा तो नहीं