वो जो दर्द देकर चले गए
क्या वो मेरे अपने है
या जो दर्द बनकर साथ जीते है
वो मेरे अपने है
सिर्फ मतलब के लिए मुझको पूछते है वो
दर्द की रात ढलते ही कहते है अब चलते है
बड़े चतुर है रिश्ते सारे
मेरी इंसानियत को बार बार परखते है
क्या वो मेरे अपने है
या जो दर्द बनकर साथ जीते है
वो मेरे अपने है
सिर्फ मतलब के लिए मुझको पूछते है वो
दर्द की रात ढलते ही कहते है अब चलते है
बड़े चतुर है रिश्ते सारे
मेरी इंसानियत को बार बार परखते है
कश्मकश
ज़िन्दगी के वो तार जो मीठी धुनें सुनाते थे वो कब के टूट चुके अब तो हर रोज खट पट की आवाज़ से दिन निकलता और डूबता है...एक गहन उदासी उसके मन में छायी रहती है पंख कटने का अहसास जीने की आरज़ू को ख़त्म करता रहता है और तमाम ऐश ओ आराम के बावज़ूद भी मेरी सहेली माधवी खुश नहीं थी..सुबह के पांच बज चुके है नींद के बाद भी सिर में भारीपन है ...माधवी का चेहरा आँखों के सामने घूम रहा है रात जब उससे मिली थी तो उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे पता नहीं किस हाल में होगी वो ...मन में बड़ी अजीब सी उथल पुथल हो रही थी दिल में बार बार दोस्त की खैरियत जानने की इच्छा थी पर इतनी सुबह फ़ोन करना उचित नहीं लगा और थोड़ा रुकने का फैसला ले मैंने ईश्वर से उसकी सलामती कि प्रार्थना की..खिड़की से पर्दा खीचा तो सूरज कि लालिमा अपना आँचल फैला रही थी बाहर का नज़ारा बेहद सुकून देने लगा कुछ देर वही ठिठक गयी मन कि तमाम परेशानियों से कुछ राहत मिली ...ठंडी हवा के झोके ने जीने कि नयी ऊर्जा दी ...पक्षियों कि चहचहाट आज कुछ ज्यादा ही अच्छी लग रही थी ...लग रहा था जैसे दिलासा दे रही हो..चलो कुछ तो अच्छा है इस सुबह में ..मम्मी को चाय ठीक छः बजे पीनी होती है और अब तक मैं अपने ही विचारो मैं मगन थी ..जल्दी जल्दी बिस्तर समेटे और बाथरूम कि तरफ भागी...पूजा के बाद मम्मी को चाय पूछने कमरे तक पहुची ही थी कि फ़ोन घंटी बज उठी..घबराहट ने फिर मुझे जकड लिया ..चाय की प्याली माँ को देते ही फ़ोन का रुख किया ...माधवी की आवाज़ भर्रायी हुई थी ..बार बार मिलने की ज़िद कर रही थी बस एक ही बात कह रही थी अब नहीं सहा जाता ...बड़ी मुश्किल से उसको दिलासा दिया और मिलने का वादा कर मैंने फ़ोन रखा
क्या हो गया मेरी हमेशा मुस्कुराते रहने वाली दोस्त को ...आखिर क्यों बार बार मरने की बातें करती है ..कॉलेज के दिन कैसे भूल जाऊ क्लास में हर कॉमपीटीशन में आगे रहने वाली माधवी अब ज़िन्दगी से हार मान रही है..वो लड़की जिसकी एक झलक के लड़के दीवाने हुआ करते थे कॉलेज के बाहर लाइन लगाए रहते थे औऱ वो स्कार्फ़ लगा कॉलेज से छुप कर निकल जाया करती थी ..कोई लड़का अब तक उसका दोस्त नहीं था ...न जाने कब और कहाँ वो शिशिर से मिली और अपने आप से अलग हो गई ..कॉलेज की पढाई के बाद मैं इंटर्नशिप में बिजी हो गई और माधवी का परिवार पटना शिफ्ट हो गया ..पहले फ़ोन पर लंबी लंबी चर्चाये होती थी दिन की हर छोटी बड़ी बात हमारी टेलीफोनिक मीटिंग का हिस्सा होती पर न जाने कब ये चर्चाए सिर्फ साप्ताहिक हाय हेल्लो में तब्दील हो गई पता ही नहीं चला..यहाँ तक की कुछ साल पूरी तरह संपर्क टूट गया ...जिसकी वजह एक नया रिश्ता था जिसकी भनक माधवी ने कभी नहीं लगने दी ..रात माधवी ने जो बताया वो मेरे लिए अजीब इसलिए भी था क्योकि माधवी लड़को से दूर रहा करती थी फिर शिशिर ने कैसे उससे ऐसा रिश्ता बनाया जिसे वो खुद निभाना ही नहीं चाहता था ..ये लड़को की छोटी मोटी मदद और लड़की का उसपर धीरे धीरे निर्भर होना कितना भयावह हो सकता है ये माधवी से बेहतर कौन जान सकता है ..
पटना मे एक विज्ञापन एजेंसी में माधवी ने पार्ट टाइम जॉब ज्वाइन कर लिया था और यही सेल्स डिपार्टमेंट में शिशिर काम करता था उनकी फीमेल बॉस का टॉर्चर टीम को तोड़ रहा था ...परेशान सेल्स टीम फील्ड में न जाकर चाय की थड़ी पर दिन बिताती और यही हुई मुलाकात माधवी और शिशिर की ...माधवी की सरलता किसी को भी आकर्षित करने के लिए काफी थी नए शहर में एक अच्छे दोस्त की तरह था शिशिर ...ऑफिस की बातें से पर्सनल बातो का दौर कुछ एक आध महीनो में शुरू हो गया था ..शिशिर के रिश्ते की बात चल रही थी और इधर इन दोनों का रिश्ता आगे बढ़ रहा था ...चाय की थड़ी से मुलाकाते शिशिर के फ्लैट में शिफ्ट हो गयी ..दोस्त के साथ पार्टनरशिप में लिया था उसने फ्लैट और यही माधवी शिशिर रिश्ता गहरा हुआ ..माधवी ने बताया की मन कचोटता था पर दिल एक न सुनता था और वो बस खिंचती चली गयी ..शिशिर माधवी से अलग नहीं होना चाहता था और तृष्णा को वो माँ पिताजी की वजह से अपनाना चाहता था ...ये कैसा रिश्ता बन रहा था आखिर क्यों में उस वक्त अपनी दोस्त के साथ नहीं थी ...वो आज भी शिशिर को गलत नहीं मानती बस खुद को दोष देती है कहती है जीना नहीं चाहती ...
ग्यारह बजते बजते रोज़मर्रा का काम पूरा किया ऑफिस फ़ोन करके ना आने की सूचना दी और सीधे माधवी के घर का रुख किया...दरवाज़े की घंटी बजाते हुए हाथ कांप रहे थे की क्या दिलासा दूंगी माधवी को .. इस मोहपाश से मुक्त होने का कौनसा रास्ता दिखाऊ ..दरवाज़ा शिशिर ने खोला था ...जिसकी सिर्फ तस्वीर अभी तक मैंने देखी थी और मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी पर अचानक यूँ माधवी के घर मिलना होगा ये ना सोचा था ...उसकी हाय को इग्नोर करते हुए मैं सीधा माधवी की ओर बढ़ी...वो सोफे पर बैठी थी ..रात को जो माधवी मिली थी उससे बिलकुल अलग ...होठो पर पहले जैसे मुस्कान ..आँखे सूजी हुई थी पर अब इनमे चमक थी...समझ नहीं आ रहा था शिशिर को थैंक यू कहूं या गाली दूँ...पर इस वक्त तो मेरी सहेली की जीने की तमन्ना लौट आयी थी ओर मैं उन पलो को उससे छीनना नहीं चाहती थी ...
क्रमशः ..
क्या हो गया मेरी हमेशा मुस्कुराते रहने वाली दोस्त को ...आखिर क्यों बार बार मरने की बातें करती है ..कॉलेज के दिन कैसे भूल जाऊ क्लास में हर कॉमपीटीशन में आगे रहने वाली माधवी अब ज़िन्दगी से हार मान रही है..वो लड़की जिसकी एक झलक के लड़के दीवाने हुआ करते थे कॉलेज के बाहर लाइन लगाए रहते थे औऱ वो स्कार्फ़ लगा कॉलेज से छुप कर निकल जाया करती थी ..कोई लड़का अब तक उसका दोस्त नहीं था ...न जाने कब और कहाँ वो शिशिर से मिली और अपने आप से अलग हो गई ..कॉलेज की पढाई के बाद मैं इंटर्नशिप में बिजी हो गई और माधवी का परिवार पटना शिफ्ट हो गया ..पहले फ़ोन पर लंबी लंबी चर्चाये होती थी दिन की हर छोटी बड़ी बात हमारी टेलीफोनिक मीटिंग का हिस्सा होती पर न जाने कब ये चर्चाए सिर्फ साप्ताहिक हाय हेल्लो में तब्दील हो गई पता ही नहीं चला..यहाँ तक की कुछ साल पूरी तरह संपर्क टूट गया ...जिसकी वजह एक नया रिश्ता था जिसकी भनक माधवी ने कभी नहीं लगने दी ..रात माधवी ने जो बताया वो मेरे लिए अजीब इसलिए भी था क्योकि माधवी लड़को से दूर रहा करती थी फिर शिशिर ने कैसे उससे ऐसा रिश्ता बनाया जिसे वो खुद निभाना ही नहीं चाहता था ..ये लड़को की छोटी मोटी मदद और लड़की का उसपर धीरे धीरे निर्भर होना कितना भयावह हो सकता है ये माधवी से बेहतर कौन जान सकता है ..
पटना मे एक विज्ञापन एजेंसी में माधवी ने पार्ट टाइम जॉब ज्वाइन कर लिया था और यही सेल्स डिपार्टमेंट में शिशिर काम करता था उनकी फीमेल बॉस का टॉर्चर टीम को तोड़ रहा था ...परेशान सेल्स टीम फील्ड में न जाकर चाय की थड़ी पर दिन बिताती और यही हुई मुलाकात माधवी और शिशिर की ...माधवी की सरलता किसी को भी आकर्षित करने के लिए काफी थी नए शहर में एक अच्छे दोस्त की तरह था शिशिर ...ऑफिस की बातें से पर्सनल बातो का दौर कुछ एक आध महीनो में शुरू हो गया था ..शिशिर के रिश्ते की बात चल रही थी और इधर इन दोनों का रिश्ता आगे बढ़ रहा था ...चाय की थड़ी से मुलाकाते शिशिर के फ्लैट में शिफ्ट हो गयी ..दोस्त के साथ पार्टनरशिप में लिया था उसने फ्लैट और यही माधवी शिशिर रिश्ता गहरा हुआ ..माधवी ने बताया की मन कचोटता था पर दिल एक न सुनता था और वो बस खिंचती चली गयी ..शिशिर माधवी से अलग नहीं होना चाहता था और तृष्णा को वो माँ पिताजी की वजह से अपनाना चाहता था ...ये कैसा रिश्ता बन रहा था आखिर क्यों में उस वक्त अपनी दोस्त के साथ नहीं थी ...वो आज भी शिशिर को गलत नहीं मानती बस खुद को दोष देती है कहती है जीना नहीं चाहती ...
ग्यारह बजते बजते रोज़मर्रा का काम पूरा किया ऑफिस फ़ोन करके ना आने की सूचना दी और सीधे माधवी के घर का रुख किया...दरवाज़े की घंटी बजाते हुए हाथ कांप रहे थे की क्या दिलासा दूंगी माधवी को .. इस मोहपाश से मुक्त होने का कौनसा रास्ता दिखाऊ ..दरवाज़ा शिशिर ने खोला था ...जिसकी सिर्फ तस्वीर अभी तक मैंने देखी थी और मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी पर अचानक यूँ माधवी के घर मिलना होगा ये ना सोचा था ...उसकी हाय को इग्नोर करते हुए मैं सीधा माधवी की ओर बढ़ी...वो सोफे पर बैठी थी ..रात को जो माधवी मिली थी उससे बिलकुल अलग ...होठो पर पहले जैसे मुस्कान ..आँखे सूजी हुई थी पर अब इनमे चमक थी...समझ नहीं आ रहा था शिशिर को थैंक यू कहूं या गाली दूँ...पर इस वक्त तो मेरी सहेली की जीने की तमन्ना लौट आयी थी ओर मैं उन पलो को उससे छीनना नहीं चाहती थी ...
क्रमशः ..
waiting for the story's next part
जवाब देंहटाएंGOOD STORY WAITING FOR THE NEXT PART...
जवाब देंहटाएंWaiting for next part..
जवाब देंहटाएंGood story ...Awaiting for next part...
जवाब देंहटाएंkashmakash behtreen kahani hai
जवाब देंहटाएंwaiting for next one
जवाब देंहटाएंkashmakash behtreen kahani hai
जवाब देंहटाएंdard ke rishte jeevan mein zaruri hai...kahani behad acchi hai aage ke bhag ka inatazar hai
जवाब देंहटाएंwakt badal gaya hai rishte badal rahe hai...bachne se accha hai in rishto ko sambhalna seekhe hum
जवाब देंहटाएंरिश्तो को लेकर आपका नजरिया दर्द को समझता है...सुख कहा है आजकल दुःख की महामारी जो फैली है ...सही वक्त पर सही रिश्तो का चुनाव ज़रूरी है ...सीख का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंkahani ke agle bhag ka inatazar rahega...bharat ki hakikat hai ...bete ke moh mein sab barbad ho raha hai
जवाब देंहटाएंrishte aise hi hote hai...apne to apne hote hai
जवाब देंहटाएंye kaise rishte...sad
जवाब देंहटाएंrishto ki pehachan zaruri hai
जवाब देंहटाएंRiste parakhna zaruri hai dosto...good lines
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