धर्म क्या है किसके प्रति है अब शायद इसकी परिभाषा बदल चुकी है ..बदलते परिवेश मैं सबसे ज्यादा परिवर्तन अगर किसी का हुआ है तो वो धर्म है जिसे हर इन्सान ने अपने छोटे हितों को पुरा करने मे हमेशा उपेक्षित किया है..क्या हम भूल गए है की हमारा कर्तव्य ही हमारा धर्म है देश समाज परिवार और फिर उसके बाद ख़ुद के लिए हम सोचा करते थे विरासत मैं यही सीख मिली थी पर फिर वो कौनसी हवा चली जिसमे धर्म के मायने संहार और सिर्फ़ अपनी ज़रूरतों को पूरा करना सीखा हमने..वो भी किसी और के कंधे पर बन्दूक रखकर
ईश्वर खुदा जिस रूप मैं भी उन्होंने धरती पर जन्म लिया अपना कर्तव्य पूरा किया न की कट्टरता बर्बरता मे लिप्त हो अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया ...तो फिर क्यो हम इन्सान जो उस मार्ग पर चलने की बात कह कर आपस मे लड़ते है ...
क्या यही धर्म है तो फिर कभी नही रुक सकता इस shristhi का पतन ...
अभी वक्त है संभलने का सोचने का बदलने का कुछ यु भी कहा जा सकता है अभी नही तो कभी नही