शून्य के आगे उज़ाला है
शून्य के पीछे घना अँधेरा
सियाचिन की ठण्ड में जीवन कहाँ
शून्य से नीचे पारा यहाँ
आर्य भट्ट ने शून्य की खोज की
जग को मिला उजियारा
उत्पत्ति की खोज को आधार मिला
जब शून्य का जन्म हुआ
क्यों कहती हूँ मैं मुझसे मत मिलो
अभी मैं शून्य में हूँ क्योकि
आरम्भ पर जाना ज़रूरी है आगाज़ से पहले
जीवन में शून्य ना हो तो आरम्भ कहाँ से हो
अंत अगर शून्य पर ना हो तो मोक्ष कैसे हो
पृथ्वी गोल है और शून्य उसके समानांतर
दिन ढले तो रात हो,रात ढले तो दिन
जीवन ख़त्म होता है और फिर कही किसी का आरम्भ