ये मेरी कमज़ोरी है या मेरी ताकत,जानती हूँ
मेरे साथी मुल्क हमारी मानवीय संवेदनाओ को कितना भी परखे
मुझे मेरे संवेदन शील होने पर गर्व है
कही पढ़ा है मैंने जो संवेदना हीन है
वो मनुष्य नहीं ...
रोमानिया के विषय में पढ़कर जाना एक मैं ही नहीं
संवेदना की नाव में सवार
कही मेरा कोई साथी भी इस नदी में पतवार का सहारा लिए ज़िंदा है
हर क्रिया की प्रतिक्रिया में भी इसका भाव है
भाव के बिना असर मुमकिन नहीं
खुद में खुद को महसूस करने की ताकत तो सबको बख्शी है खुदा ने
गैरो को अनुभव कर सके वही संवेदना से भरा कहला सकता है
सिर्फ आकृति मनुष्य जैसी होना संवेदना से पूर्ण होने का ध्योतक नहीं
हिटलर भी तो इसी जाति का हिस्सा था
इश्क़ की खूबसूरती में भी संवेदना का पुट होता है
फिर जलन में भी तो एक अहसास ज़िंदा है
दिल से जुड़ना,महसूस करना ये कब से मनुष्य जाति की पहचान नहीं
मैं भारतीय हूँ और अब तक मनुष्य हूँ
गहन संवेदनाओ से ओत प्रोत