जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे
नैन थके पर वो ना दिखे
दीप जलाये, गीत सुनाये
हर पथ पर एक आस जगाये
सागर से मोती चुन लाए
अम्बर से तारे चुन लाए
फिर भी क्यों ना मेरे राम मिले
जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे
मंदिर छाने महल भी छाने
वन उपवन और ताल भी छाने
मन मंदिर में लगा के ताले
ढूंढ रही मैं राम को
जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे
उजियारे की किरण दिखी
अंधकार में ज्योत जगी
जिनको ढूंढा घर घर में
राम तो मेरे मन में बसे
जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे
जहाँ राम बसे वहाँ छल ना बसे
निर्मल मन में अमिट छवि बसे
छोड़ दिए सारे लोभ और मोह
पहचान लिया मैंने राम को
जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे