लिखने की वजह खुद में खुद की तलाश है
शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016
नारी मन
अविरल स्वछंद मेरे मन की गंगा बह निकली
वेग मे करूणा का प्रबल आवेग
ज्यो सागर मे उठते गिरते ज्वार भाटा अनेक
कल कल छल छल ज्यू ब्रह्मपुत्र मे अश्रु समावेश
इस नारी मन की पीर की थाह न पाया कोई
बांध बने सरपट कभी तो राह मिले जग को सही
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