घुटन थी दरवाज़े के उस पार
ना आवाज़ सुनने वाला था कोई
ना आवाज़ निकलने देता था कोई
सिर्फ आँखे बोलती नज़र आती थी
मगर उस भाषा का जानकर ना था कोई
होठो के बीच फंसे अपने ही शब्दों की
आवाज़ सुनने का मन करता है
आज खुलकर सांस लेने का मन करता है
ज़िन्दगी नाम की थी जिस शख़्स के
उसके हर सितम का जवाब दे सकती हूँ मैं
आज लगता है हवा का रुख बदल रहा है
छोटे ही सही इस ठन्डे झोंके को
सलाम करने का मन करता है