शिकायत
जैसा लोग सोचते हैं हम वैसे तो नहीं
इतना खुलने की हमे जरूरत भी नहीं
खुली किताब क्यों बने उनके लिए
जिनके लिए हम कुछ भी नहीं
मन में क्यों उचाट हो उनके लिए
जिन्हे हमारे इन्सान होने की खबर ही नहीं
पत्थर है हम भी हलचल की हमें खबर ही नहीं
अपने सम्मान के लिए जीना सब चाहते हैं
एक तुम ही उस आवरण में पोशीदा तो नहीं
sach hai jise aap par bharosa nahi ya aap jinke liye ahamiyat nahi rakhte unke liye khuli kitab kyo bane
जवाब देंहटाएंwah too good
जवाब देंहटाएंshikayat lazami hai
जवाब देंहटाएंJo samajhna na chahe unke liye khulne ki zarurat bhi nahi..touching fact
जवाब देंहटाएंJo samajhna na chahe unke liye khulne ki zarurat bhi nahi..touching fact
जवाब देंहटाएंTrue why should we be open for those who never care for us...
जवाब देंहटाएंregards
A great Fan
right
हटाएंshikayat sahi hai ...jise fikra nahi uski fikra kyo
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