बरस पर बरस बीत गए एक बेल को पलते आंगन में
कभी बढती कभी थोड़ा रूक कर बढती ये स्नेह बेल
कीड़ो और बिन बुलाई ऋतुओं से बचती ये अमर बेल
लम्बे अर्से से क्यों कुम्हलाई हुई है मेरी भाग्य संगिनी ये
सुबह सवेरे खिलखिलाकर हँसती थी जो आगंन मे बेल
कैसी आहट किसकी नफरत में अब जलती हो रानी बेल
कभी बढती कभी थोड़ा रूक कर बढती ये स्नेह बेल
कीड़ो और बिन बुलाई ऋतुओं से बचती ये अमर बेल
लम्बे अर्से से क्यों कुम्हलाई हुई है मेरी भाग्य संगिनी ये
सुबह सवेरे खिलखिलाकर हँसती थी जो आगंन मे बेल
कैसी आहट किसकी नफरत में अब जलती हो रानी बेल
सबको संबल देनेवाली,पीड़ा सबकी हरने वाली बेल
किसकी नज़र से तुम ढल रही हो मेरी साथी बेल
एक पौध तुम्हारी अब बढने लगी है बाबूजी की बेटी के घर
प्यार बंटा,वहां कुछ ज्यादा वक्त बिता वो लौटे कहां
घर भूले,घर का आगंन भूले और भूल गए वो रानी बेल
किसकी नज़र से तुम ढल रही हो मेरी साथी बेल
एक पौध तुम्हारी अब बढने लगी है बाबूजी की बेटी के घर
प्यार बंटा,वहां कुछ ज्यादा वक्त बिता वो लौटे कहां
घर भूले,घर का आगंन भूले और भूल गए वो रानी बेल
Nice reading...keep writing
जवाब देंहटाएंपेड़ो की और हमारा उदासीन रवैया बेहद गलत है..जिस पेड़ को हम उगाते है क्यों उसे भूल जाते है ...
जवाब देंहटाएंtoo good
जवाब देंहटाएंwah kya baat hai
जवाब देंहटाएंmere aangan ki vansh beil...ek acchi rachna hai
जवाब देंहटाएंplants are our life
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