विरक्ति
दुनिया की ठेस मोह भंग कर देती है।
अपनो की उदासीनता नयी राह दिखाती है।
कब कहां कौन किससे अलग होता है
एक जन्म में कौन नया जन्म लेता है।
मनुष्य जो अपनी अन्तरआत्मा से पहचान कर लेता है।
संसार से विरक्त होकर एक नया अध्याय शुरू करता है।
दुख दर्द के बाद की विरक्ति पहाड़ो की कन्दराओं तक पहुंचती है।
खुद से विरक्ति ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम बनती है।
युगों युगों में कोई विरला ही ऐसा इतिहास रचता है।
उसे कोई यीशु, तो कोई बुद्ध के नाम से जानता है।
जीवन में कुछ क्षण ऐसे आते है जब मनुष्य पहले संसार से और फिर खुद से विरक्त होने लगता है ..आखिर ऐसा क्यों होता है..कौनसी शक्ति हमें अपनी और खींचती है क्या ये अधिकांशतः साधारण मनुष्य के जीवन के अंतिम चरण में ही होता है ... क्या विरक्ति लोभ, मोह,न्याय, अन्याय,आशा,निराशा का बंधन समाप्त कर देती है ..आखिर इसकी आवश्यकता क्या है..क्या ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग विरक्ति से होकर जाता है ...क्या प्रकाश में लीन होने से पूर्व अंधकार का ख़त्म होना ज़रूरी है ...या फिर प्रकाश अंधकार को लील लेता है ..क्या किसी उपदेश से किसी मनुष्य की आसक्ति को विरक्ति में बदला जा सकता है जैसे रत्नावली के उपदेशो ने तुलसीदास की आसक्ति को विरक्ति में परिणित कर दिया ..क्या कलिंग युद्ध में नरसंहार को देखकर अशोक की युद्ध से विरक्ति हुई और उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया जैसे क्रोंच वध की घटना से रत्नाकर को दस्युकर्म से विरक्ति हो गई।
सत्य तो ये है की शमशान की विरक्ति को वास्तविक विरक्ति नहीं कहा जा सकता।
virakti mritushaiya par mumkin nahi
जवाब देंहटाएंvirakti ka bhav gahra jata hai umra ke antim padav par
जवाब देंहटाएंKitna sach hai
जवाब देंहटाएंVirakti..true words are so close to soul
जवाब देंहटाएंVirakti great post
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