मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

विरक्ति

दुनिया की ठेस मोह भंग कर देती है।
अपनो की उदासीनता नयी राह दिखाती है।

कब कहां कौन किससे अलग होता है
एक जन्म में कौन नया जन्म लेता है।

मनुष्य जो अपनी अन्तरआत्मा से पहचान कर लेता है।
संसार से विरक्त होकर एक नया अध्याय शुरू करता है।

दुख दर्द के बाद की विरक्ति पहाड़ो की कन्दराओं तक पहुंचती है।
खुद से विरक्ति ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम बनती है।

युगों युगों में कोई विरला ही ऐसा इतिहास रचता है।
उसे कोई यीशु, तो कोई बुद्ध के नाम से जानता है।

 

जीवन में कुछ क्षण ऐसे आते है जब मनुष्य पहले संसार से और फिर खुद से विरक्त होने लगता है ..आखिर ऐसा क्यों होता है..कौनसी शक्ति हमें अपनी और खींचती है क्या ये अधिकांशतः साधारण मनुष्य के जीवन के अंतिम चरण में ही होता है ... क्या विरक्ति लोभ, मोह,न्याय, अन्याय,आशा,निराशा का बंधन समाप्त कर देती है ..आखिर इसकी आवश्यकता क्या है..क्या ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग विरक्ति से होकर जाता है ...क्या प्रकाश में लीन होने से पूर्व अंधकार का ख़त्म होना ज़रूरी है ...या फिर प्रकाश अंधकार को लील लेता है ..क्या किसी उपदेश से किसी मनुष्य की आसक्ति को विरक्ति में बदला जा सकता है जैसे रत्नावली के उपदेशो ने तुलसीदास की  आसक्ति को विरक्ति में परिणित कर दिया ..क्या कलिंग युद्ध में नरसंहार को देखकर अशोक की युद्ध से विरक्ति हुई और उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया जैसे क्रोंच वध की घटना से रत्नाकर को दस्युकर्म से विरक्ति हो गई।

 

Ishwarprapti,virakti,Alienation,Moksh,Creativewriting,blogसत्य तो ये है की शमशान की विरक्ति को वास्तविक विरक्ति नहीं कहा जा सकता।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

शिकायत

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जैसा लोग सोचते हैं हम वैसे तो नहीं
इतना खुलने की हमे जरूरत भी नहीं

खुली किताब क्यों बने उनके लिए

जिनके लिए हम कुछ भी नहीं


मन में क्यों उचाट हो उनके लिए
जिन्हे हमारे इन्सान होने की खबर ही नहीं 


पत्थर है हम भी हलचल की हमें खबर ही नहीं
अपने सम्मान के लिए जीना सब चाहते हैं
एक तुम ही उस आवरण में पोशीदा तो नहीं

बुधवार, 21 दिसंबर 2016

मेरे आंगन की वंश बेल

why plants are neglected

बरस पर बरस बीत गए एक बेल को पलते आंगन में
कभी बढती कभी थोड़ा रूक कर बढती ये स्नेह बेल
कीड़ो और बिन बुलाई ऋतुओं से बचती ये अमर बेल
लम्बे अर्से से क्यों कुम्हलाई हुई है मेरी भाग्य संगिनी ये
सुबह सवेरे खिलखिलाकर हँसती थी जो आगंन मे बेल
कैसी आहट किसकी नफरत में अब जलती हो रानी बेल
सबको संबल देनेवाली,पीड़ा सबकी हरने वाली बेल
किसकी नज़र से तुम ढल रही हो मेरी साथी बेल
एक पौध तुम्हारी अब बढने लगी है बाबूजी की बेटी के घर
प्यार बंटा,वहां कुछ ज्यादा वक्त बिता वो लौटे कहां
घर भूले,घर का आगंन भूले और भूल गए वो रानी बेल

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

सब कुशल मंगल तो है !


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गांव में हवा के साथ सूकून भी बहता है।
मन मस्तिष्क को फिर एक बार रवां कर लो
यहां निराशा को सूरज की गर्मी पिघला देती है
अब चाहो तो आशाओं से सुलह कर लो
बावड़ी में पानी का स्तर कम ही सही
पर प्यास बुझती है फिर भी सबकी यही
शहर में हजार चीखो
का जवाब नहीं मिलता
यहां सांस की आवाज भी असर दिखाती है ।
गांव में रूह के साथ जीते है सभी
शहर में आत्मा को मारकर आगे बढ़ रहे है सभी
जिन्दा तो शहर मे सारे नज़र आते है
पर गांव में जिन्दगी नज़र आती है 

गांव का घर दुनिया की हर खूबसूरत जगह से सुन्दर है सुबह छत की मुन्डेर से होते हुए सूरज की किरन का मेरे कमरे की खिड़की से अन्दर आना।दूर कही ईश्वर की अरदास में बजती मंदिर की घंटिया सुबह में नयी ऊर्जा भर देती है।पक्षियों की चहचहाहट जो अब बड़े शहरो मे सुनाई देना लगभग खत्म सी हो गयी है।मन को अन्दर तक ताजगी से भर देती है।आज भी जब शहर की भीड़ में गुम होने लगती हूं तो मन गांव की ओर भागता है बड़ी से बड़ी परेशानी से ऊबार देने की ताकत है मेरे गांव के घर मे, फिर क्यों हम शहर बसाते हैं जहां कोलाहल है भागदौड़ है और सबको पीछे छोड़ शहर की सबसे ऊँची इमारत पर घर बनाने की तमन्ना, जहां से आसमान साफ दिखाई दे भाई ये तो गांव के घर से भी साफ दिखता था।एक घर को हटा कर बिल्डिंग बनाना कौनसी समझदारी का काम है इससे बेहतर तो ये होता की कुछ वक्त मैं अपनो के बीच गुजारती  मेरे गांव के घर में जहां सांस की आवाज भी निकलती तो पड़ोसी पूछते सब कुशल मंगल तो है

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

मेरे अपने

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दर्द की भाषा कौनसी होती है
क्या ये सिर्फ मेरे अपनो को समझ आयेगी
तो अपनो की पहचान क्या है
क्या अपनों पर किसी रिश्ते का टैग होता हैं
कब किस मौसम मे मिलते है ये अपने
किस गली, किस मौहल्ले मे बसते है ये अपने
ढूंढो तो मिलते नहीं
गलती से इनका घर मिल भी  जाए तो
अक्सर ताले ही मिलते है वहां
होश संभालो तो जीवन के हर मोड़ पर अनेक रिश्तो से पहचान होती है  पर एक रिश्ता जिससे जीवन मिलता है  वही एक सच्चा रिश्ता होता है ।मां बच्चे के रिश्ते में कोई खोट नहीं होती। खुशनसीब है वो जिनके पास मां होती है। वरना प्यार क्या होता है कभी समझ नहीं पाते।लडकियों के लिए मुश्किले कुछ ज्यादा होती है अचानक अनजान शहर, अनजान लोगो के बीच अपनी जमीन ढूँढती है तो वो और अक्सर उम्र पूरी हो जाती है पर तलाश पूरी नहीं होती। सिर्फ सेवा का मेवा चाहिए बहू से ससुराल वालो को बाकी उनके अपने तो खून के ही रिश्ते है।
सुना है खून के रिश्ते बड़े मजबूत होते है पर अखबारो की सुर्खियां तो कुछ और ही कहती है थोड़े से पैसो में बिकते है प्रगाढ़ रिश्ते। जिस पर जितना ज्यादा यकीन होगा उससे उतना ज्यादा धोखे की आशंका।
फिर भी एक उम्मीद ता उम्र रखना दोस्तो कही ना कहीं रिश्तो में विश्वास अब भी जिन्दा है बस नज़र से ओझल है अभी। बादल छटने दो धूप खिलने दो फिर जो मिले उस खूबसूरत रिश्ते को संभालकर संजोकर रखना दोस्तो।