मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

ख़ुशी के मायने बदल गए है

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ख़ुशी का अर्थ बदल गया लगता है
पहले लोग अपनों की आखो में ख़ुशी ढूंढा करते थे
अब आईने के सामने बुत बनकर खड़े रहते है

ख़ुशी बाँटने वाले भी घर में सीमित हो गए है क्योकि
बुजुर्गो को ओल्ड ऐज होम में छोड़ना फैशन बन गया है
मन ज्यादा मचले तो पुरानी एल्बम का फोटो फेसबुक पर अपलोड होगा 

छुट्टी लेकर परिवार के साथ शॉपिंग का तो ज़माना लद गया है
ऑनलाइन शॉपिंग ने ख़ुशी की buy one get one free के नीचे कब्र जो बना दी है
पाप का हाथ पकड़कर जिद करना भी ख़ुशी का दूसरा नाम है शायद

त्यौहार पर बहाने से पडोसी के घर बेवजह पहुँच जाते थे
अब टीवी पर दिनों दिन बढ़ते चैनल वक्त नहीं देते शायद
ख़ुशी अब मोहल्ले से रूठकर सॅटॅलाइट से ट्रांसफर होती है

सोमवार, 24 अक्टूबर 2016

प्रभु इच्छा,God Wish

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आकाश में छल है
सागर में बल है
धरती पे समर है
पाताल में परत है
सृष्टि की प्रत्येक हलचल में
प्रभु इच्छा निहित है
माया है उनकी कर्म हमारा

शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

अतिथि देवो भवः

 

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अतिथि देवो भवः
भारत की भूमि पर हर घर में यही संस्कार पले
फिर क्यों विदेशी सैलानी हर बार ठगे जाते है
पूरे विश्व में फैली ख्याति जिन संस्कारो की
आज वही पर मैली हो गयी चादर उन संस्कारो की
एक छोटे से हित के खातिर फिर बलि चढ़ गए संस्कार
आखिर कितने छोटे पड गए अपने ही घर में हम आज
राह दिखाने वाले ने राहगीर को लूट लिया
एक रिश्ता विश्वास का था वो भी खुद से छीन लिया

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016

दिवाली



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कितना कुछ बदल जाता है हर साल दिवाली पर

कोई बदले घर का रंग रोगन, कोई बदले सजावट

कही पनपे नयी उम्मीदे,कही सजते नए सपने

खेतो में रबी की  बोई जाती है कहीँ नई फसले

रसोई में महकने लगती है नए धान की खुशबू

बाज़ारो की रौनक देख दंग रह जाते विदेशी सैलानी

दिवाली को भारत की धरती पर जगमग करते लाखो दिए

माँ लक्ष्मी के आशीष से धन धान्य का वैभव ऐसा देख

देवो के देव महादेव भी धरती भ्रमण को निकलते

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

हँसना कब से भूल चुके थे हम

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हँसने की एक वजह कहाँ से लाये
रोज रोज की भागम भाग निराशा ही भर जाये
कोई खींचे, कोई पीछे, जीवन अश्को में ही बीते
हँसना कब से भूल चुके थे हम
फिर एक दिन एक चेहरा ढेरो खुशियां लाया
हफ्ते के दो दिनों को उत्सव समान बनाया
ना अभद्र व्यवहार, ना अशिष्ट ही भाषा
भोले से चेहरे ने रोते को भी हँसाया
सीधी सच्ची बातें जीवन में पल में देते उतार
कुछ घंटो में जग में भर देते कपिल जीने की शक्ति अपार

स्पोर्ट्समैनशिप

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बचपन से सुनते आये है 
जीवन में हार जीत से ज्यादा स्पोर्ट्समैनशिप  है ज़रूरी
 

किन हस्तियों को देखकर कहावत  गई बनायीं
आज के हालात तो कुछ और ही इशारा करते है

स्पोर्ट्स के इंस्टेंट जवाबी संसार ने नए standard किये है तय
खेल की भावना को मारो गोली, ट्विटर हैंडल है सबसे ज़रूरी

बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

करवाचौथ

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कुंडली के सप्तम भाव ने तय किया जो स्नेह मेल
आज के दौर में सुनते,देखते है उसके अजब खेल
इतिहास हो गए राम से पत्नी प्रेमी
और लुप्त हो गयी सती स्वरूपा नारी
कुछ टीवी ने बदला प्यार का अनूठा रिश्ता
जिसमे दिल "पर" नारी पर ही फिसला
कुछ फेसबुक ट्विटर ने किया कमाल
मेल मेल पे  दिल भी बदले,बिल भी बढ़ गए
सात फेरो के बंधन में बंधते थे जो सात जन्म के रिश्ते
अब एक जन्म में बदले नर- नारी  सात आठ भी रिश्ते

हँसना मना है

लड़की मुस्कुराहट पर ताला तो लगा

इस हंसी के अर्थ मुश्किल में डाल देंगें


थोड़ा हंसोगी तो शुरूआत समझी जाएगी


खुलकर हंस दी तो फंस गई ऐलान हो जाएगा


ये पुरूषो की दुनिया के मतलब बड़े मतलबी हैं


तुम हंसोगी दिल से और उसके हौंसले बुलंद होंगे 


अपनी मां बहन को भूलकर पैमाने बनाते हैं

अब सोचो "हंसी तो फंसी"जुमला किसने मशहूर किया

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

श्वेत का समर्पण श्याम को

श्वेत का समर्पण श्याम को
जैसे दिन खो जाए शाम में 

 गोरी राधा का प्रेम श्याम से

जीत को मिले भाव हार से
सफर
का आगाज़ हो मंज़िल

प्रकाश समझ मे ना आए 
बिना अंधकार मे जाए
जीवन की जोत मिल जाए 

आखिर प्रकाश पुंज में

यही है श्वेत का समर्पण श्याम को

सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

"मैं"

"मैं" का जगत बहुत ही छोटा
अक्षर ज्ञान जितना भी हो
इंसान असफल ही होता है
"मैं" की शक्ति कितनी भी हो
"मैं"  की भक्ति कितनी भी हो
इंसान अकेला होता है
"मैं"  ने मारा रावण को
पर मैंने नही मारा मन के "मैं"  को
अब पल पल मैं ही मरता हूं
भीड़ भरे मेले मे मैं बस खुद से बातें करता हूं

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

एक रोटी और बच्चे दो

एक दुखियारी माँ की सुनो
 ये विपदा भारी
रोटी देखकर रोती जाये ..
रोते रोते कहती जाये
एक रोटी और बच्चे दो
कौन रहेगा भूखा आज
 किसे मिलेगी ऱोटी आज
माँ बोली सुन लाडली मेरी
भैया को दे  तोहफा आज
बेटी भूख से तड़पी तो
माँ बोली सुन कहानी रानी
कल जब होगी किसी की शादी
तुझे मिलेगी पूरी भाजी
सपने में दावत भी देखी
लेकिन सुबह तक आस भी टूटी
माँ की लाडली रूठ गयी
प्राण पखेरू छोड़ गयी
आखिर जीती कैसे वो
जिस माँ की पीड़ा ये हो
एक ऱोटी और बच्चे दो

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

नारी मन


अविरल स्वछंद मेरे मन की गंगा बह निकली
वेग मे करूणा का प्रबल आवेग
ज्यो सागर मे उठते गिरते ज्वार भाटा अनेक
कल कल छल छल ज्यू ब्रह्मपुत्र मे अश्रु समावेश
इस नारी मन की पीर की थाह न पाया कोई
बांध बने सरपट कभी तो राह मिले जग को सही