गुरुवार, 26 जनवरी 2017

मेरा नाम ले लेकर सरहदों की अंतहीन खुद को सजा दी है

Mera naam le lekar sarhado ki antheen khud ko saja di hai


मेरे घर की मुंडेर पर बैठी चिड़िया तू कितनी भाग्यवान है
तेरी उड़ान का कोई छोर नहीं, तुझे बांध सकी सरहद नहीं
तू धन्य है तेरे समाज, तेरे झुण्ड में किसी कायदे की फेहरिस्त नहीं
अच्छा है बस चलता नहीं इंसान का बहती हवा पर
सिर्फ इसलिए सरहदों में हवा को बंद रख सकता नहीं
इंसान को रचने वाला भी सरहदों से गुज़रता है जब
सरहद की कटीली झाड़ियों में फंसा सोचता है तब
इतनी दर्द भरी ज़िन्दगी क्या कोई खुद अपने लिए रचता है कभी
मैंने नदी को बहने दिया,पक्षियों को खुला आसमान दिया
पवन को बहने का आदेश दिया
सब मेरे आदेश के निहित बहते है एक इंसान ही है जिसने मेरी अवहेलना की है
मेरा नाम ले लेकर सरहदों की अंतहीन खुद को सजा दी है 

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