हज़ार रोशनियों का शहर आज उदास क्यों है
शहर में आज हर चेहरा दिखता जर्द क्यों है
क्यों अचानक शिथिल हर आवाज़ लगती है
सुबह की ताज़गी भी बोझिल सी महसूस होती है
अब तो पंछियो की चहचहाट शोर सी प्रतीत होती है
क्यों मेरी आँखों से काजल सुबह से धुला सा है
इन आँखों का सूनापन किस चेहरे को ढूंढता है
बगीचे में जाकर देखा तो फूलो का रंग भी कुछ फीका है
रसोई से बर्तनों का शोर अब गायब है
बस बाबूजी की आवाज़ रह रह कर सुनाई देती है
एक प्याला चाय स्पेशल वाला जरा लाना तो बिटिया
अब कहेगा कौन मुझसे ये,बाबूजी की छड़ी बताना
बगीचे में कबूतरों का झुण्ड इंतज़ार में है
कौन देगा चुग्गा उनको इतने प्यार से, सम्मान से
प्रश्नों के लगे जब अम्बार और मौन हो गए सारे जवाब
दर्द हद से बढ़ता रहा और दिन के उजाले में फैलता रहा
हज़ारो रोशनियां मद्दम पड़ने लगी और दर्द का आकार बढ़ता रहा
मेरे शहर में किसी के न होने का अहसास कितना गहरा है
अभी तक यहाँ दर्द ने सबको ख़ामोशी से बांध रखा है
आसमान की चादर आंसुओ से भीगी जब तक है
मेरे शहर की हर शय अपनी सी लगती रहेगी
रिश्ता तो एक मेरा खो गया है तारों में
फिर मेरा शहर मेरे साथ भला रोता क्यों हैं
Sach hai kisi apne ke khone ka dard shahar bhi bantata hai hamare sang.
जवाब देंहटाएंPain flows from eyes and affects everyone
जवाब देंहटाएंbabuji yaad aa gaye
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