सोमवार, 14 अगस्त 2017

वो सुबह कैसे आएगी ....

The dawn,Morning

Pic Courtesy:Fine Art America

इंतज़ार अभी तक बाक़ी है ..प्रश्न अभी कुछ बाक़ी है
वो सुबह कैसे आएगी ....बरस गए, हम तरस गए
शाखों के पत्ते कुछ सूख गए, कुछ टूट गए
उठते है जो कुछ कदम भी तो
उस जलती हुई शमा को यहाँ ...
घनघोर अँधेरा निगल जाये
वो सुबह कैसे आएगी ....
वो सुबह कैसे आएगी ....

कुछ आलम है कुछ बालम है सपनो के यहाँ सौदागर है
बहकते हुए कदमो के लिए सोने की यहाँ ज़ंज़ीरे है
चहकते हुए चेहरों के लिए ग्लैमर के सिवा न कोई छोर है
नींदो के भंवर में कश्ती फंसी ह्रदय के भंवर में सपने मरे
वो सुबह कैसे आएगी ....वो सुबह कैसे आएगी ....

प्रश्नो के बढ़े अम्बार यहाँ.. सवालो का ना कोई ज़िम्मेदार यहाँ
एक आगे बढ़ता है सौ पीछे हटते है
कागज़ के महल बनते है यहाँ, एक हस्ताक्षर से बिकते है वहां
पढ़ते है कहाँ ...बढ़ते है कहाँ ..माँ बाप को बोझ अभी तक कहते है यहाँ
ये सुबह कैसे आएगी
वो सुबह कैसे आएगी ....



शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

मौन सत्य

truth is silent
Pic Courtesy:VirtuaGYM
कहीं कुछ बह रहा है 
बिन आवाज़ 
कहीं कुछ जल रहा है 
बिन गंध 
कहीं मेघ बरस रहे है
बिन सावन
कहीं कोई बहक रहा है
बिन वजह
कहीं कोई गिर रहा है
बिन वजह 
कहीं रात ढल रही है 
बिन चाँद 
कहीं साज बज रहे है 
बिन बात 
कहीं बात बढ़ रही है 
बिन बात
हालात बदल रहे है 
बिन बात  
इंसान जल रहे है 
क्यों बिन बात 
कैसे पाऊं वो नज़र 
जो समझे इस मौन सत्य का राज़

बुधवार, 2 अगस्त 2017

दो भारत

I love my India,IndiaPic Courtesy :Firkee.in
एक देश दो तस्वीरें
कही आज़ादी, कही बेड़ियाँ
एक देश मेरा, एक गांव मेरा
कहीं बहता पानी,कहीं दलदल की वही पुरानी कहानी
सिर गर्व से उठता है जब आकाश फ़तह हो जाता है
फिर नीम्बू मिर्ची के ज़ख्मो से मन आहत हो जाता है
एक कदम बढाकर थमना ना जाने
दूजा रूढ़िवादिता के भंवर से निकलना ना चाहे
कहीं विकास की निशानियां, कहीं पतन की कहानियाँ
जग कहे एक नयी उम्मीद है भारत
हम कहे सोचो कैसे एक हो भारत
अधिकार सशक्त, कर्तव्य निशब्द
बेजोड़ सभ्यता संस्कृति की यहाँ असीम निशानियां
एक देश दो तस्वीरें
कही आज़ादी,कही बेड़ियाँ  

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

डूबता सूरज जागते अरमान

Rise and fall,Sea beach stories,love story
Pic Courtesy:Red Sky Sea Beach
हम लेकर बैठे जहाँ सपनो का संसार 
वो समंदर किनारा,जहाँ मिटटी का घर 
रोष मिटते रहे,ख्वाहिशे पलने लगी 
लहरों के हिलोरों में साँझ प्रेम गीत लिखती रही
आँखों में नवीन एक जगत रचती रही 
बीती हुई रतिया को मीठे जल से धोती रही
एक ज़िन्दगी बहकती रही,एक ज़िन्दगी महकती रही
चाँद आकाश पर आकर ठहर गया था वहां
नीचे उसे छूने को कसमो की झड़ी थी लगी
रात चांदनी थी मगर स्वप्न रोशन ना हुए
सपनो में शायद उम्मीद की किरन ही ना थी
हसरते दफ़न हुई सागर की अथाह गहराई में
एक कहानी फिर मिट गयी, रह गई साँझ तन्हाई में