Pic Courtesy:Fine Art America
इंतज़ार अभी तक बाक़ी है ..प्रश्न अभी कुछ बाक़ी है
वो सुबह कैसे आएगी ....बरस गए, हम तरस गए
शाखों के पत्ते कुछ सूख गए, कुछ टूट गए
उठते है जो कुछ कदम भी तो
उस जलती हुई शमा को यहाँ ...
घनघोर अँधेरा निगल जाये
वो सुबह कैसे आएगी ....
वो सुबह कैसे आएगी ....
कुछ आलम है कुछ बालम है सपनो के यहाँ सौदागर है
बहकते हुए कदमो के लिए सोने की यहाँ ज़ंज़ीरे है
चहकते हुए चेहरों के लिए ग्लैमर के सिवा न कोई छोर है
नींदो के भंवर में कश्ती फंसी ह्रदय के भंवर में सपने मरे
वो सुबह कैसे आएगी ....वो सुबह कैसे आएगी ....
प्रश्नो के बढ़े अम्बार यहाँ.. सवालो का ना कोई ज़िम्मेदार यहाँ
एक आगे बढ़ता है सौ पीछे हटते है
कागज़ के महल बनते है यहाँ, एक हस्ताक्षर से बिकते है वहां
पढ़ते है कहाँ ...बढ़ते है कहाँ ..माँ बाप को बोझ अभी तक कहते है यहाँ
ये सुबह कैसे आएगी
वो सुबह कैसे आएगी ....
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