Pic Courtsey-MikkoLagerstedt
मैं तम से न डरी तो तिमिर ने आ घेरा
ये कदम फिर भी बढ़ते गए
मुश्किलों से टकराते हुए हौंसले बढ़ते रहे
रुक कर संभाला जिन परिस्थितियों को
वही से कुछ अमिट घाव फिर मिले
दर्द और तिमिर का आवरण जकड़े मुझे
उससे पहले रौशनी के च्रिराग जलाये मैंने
तमस के स्नेही जग को नमन मेरा
जिसने लौ जगाने का मौका दिया
जगमगाते बीहड़ से निकलकर करूँ
एक नयी सुबह का शुक्रिया
तमस की हर घडी को सलाम मेरा
तप कर निखरने का मौका दिया
अस्तित्व मेरा तमस के कारण है
भोर की पहली किरन
तू अभिवादन स्वीकार कर मेरा
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, सादर आभार।
जवाब देंहटाएंThank you so much for the feed back Rajendra ji.
हटाएंSuper duper
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत खूब मंजुला
जवाब देंहटाएंThank you for the feedback Rajeev ji
हटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
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