जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है
स्वछन्द विचार कितने भी हो
घर की चार दीवारी से टकराते है
पाने को सारा खुला आसमान है
खोने को कुछ गज़ का मकान है
थक कर चूर जब हो जाओ
पंखो को विराम भी दो
पीछे छूटे साथी का इंतज़ार भी हो
लौट आओ जब संध्या हो
उड़ने की कोई वजह ना हो
छोटी सी ज़िंदगानी है
अपनों संग भी बितानी है
जीत के तुम संसार को
हार ना जाना परिवार को
मुट्ठी भर दिन जीवन के
कुछ सपनो में, कुछ उड़ने में
बोलो धरती पर लौटोगे कब
रिश्तो की बगिया में महकोगे कब
जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है
छोटी सी उम्र में सपने बड़े
जिनसे सीखा उड़ना उनको क्यों कुचल चले
सूरज तक तुमको पहुँचना है
बादल के संग ही उड़ना है
अनुभव और परिश्रम बिन
जीत का फल भी खट्टा है
बहुत प्रभावपूर्ण रचना......
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपके विचारों का इन्तज़ार.....
बहुत शुक्रिया सर आपके ब्लॉग की रचनाएँ पढ़ने के लिए उत्सुक हूँ जुड़ने के लिए धन्यवाद्
हटाएंकितना सही चित्रण किया है आपमें एक बड़े वर्ग को अपनी रचनाओं के माध्यम से दिशा दिखाने की क्षमता है ...शुक्रिया आपके कहे शब्दों का मर्म समझ चुका हूँ जीवन में उतारने की कोशिश करूँगा
जवाब देंहटाएंहम जैसे नवयुवको के लिए आपकी रचनाये प्रेरणा का स्रोत है ...आशा है आप हमेशा हमें ऐसे ही लाभान्वित करती रहेंगी
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ...आपकी रचनाये पढ़कर नयी राह नज़र आती है बदलते वक्त के साथ ऐसे लेखन की ज़रूरत है जो भटकते नौजवानो को सही रास्ता दिखा सके...आशा है आपकी कविताये एक बार फिर राष्ट्र निर्माण में सहयोग देंगी
आपका बहुत शुक्रिया ...हमेशा यही कोशिश रहेगी
हटाएंsuperb blog..impressed
जवाब देंहटाएंThis the best blog..required in present time
जवाब देंहटाएंInspiring poem for youth
जवाब देंहटाएंBahut khubsurat shabd didi..loved this writing
जवाब देंहटाएंJo unmukt Hagan mein update Hai...Wah Kya khub likha Hai aapne
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