घुटन थी दरवाज़े के उस पार
ना आवाज़ सुनने वाला था कोई
ना आवाज़ निकलने देता था कोई
सिर्फ आँखे बोलती नज़र आती थी
मगर उस भाषा का जानकर ना था कोई
होठो के बीच फंसे अपने ही शब्दों की
आवाज़ सुनने का मन करता है
आज खुलकर सांस लेने का मन करता है
ज़िन्दगी नाम की थी जिस शख़्स के
उसके हर सितम का जवाब दे सकती हूँ मैं
आज लगता है हवा का रुख बदल रहा है
छोटे ही सही इस ठन्डे झोंके को
सलाम करने का मन करता है
Beautifully you have written about the pain of muslim women
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट व सराहनीय प्रस्तुति.........
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाओ सहित नई पोस्ट पर आपका इंतजार .....
आपको भी नया साल मुबारक और बेहद शुक्रिया आपका ...अपनी राय कमेंट के ज़रिय पहुंचने के लिए
हटाएंआशा है आपको नई रचना पसंद आएगी आपके कमैंट्स का हमेशा इंतज़ार रहेगा
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं