सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

खेल अब खेल कहाँ

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Picture Courtesy:Pinterest • The world’s catalog of ideas

गली के नुक्कड़ पर एक मैदान में शुरू हो गई है नयी पारी 
हज़ारो तालियों की गूंज और उस पर बेतहाशा हँसने खिलखिलानें की आवाज़े 
एक खेल, एक उम्मीद, एक ख़ुशी की लहर का आगाज़
दिमाग को थोड़ा सुकून मिलेगा,रग रग में नया उत्साह  दौड़ेगा
जीवन की निराशाओं को दर किनार कर खिलाडी खेलेंगे अपने लिए 
खेल की खूबसूरत भावना के लिए 
देखने वालो की,उनके अपनों की भीड़ के लिए
जिनके चेहरे अजनबी होकर भी अपने लगेंगे 
बॉल की स्पिनिंग सिर्फ हुनर का प्रतीक होगी 
जिसकी कीमत किसी बिडिंग में ना अदा होगी 
बैट का हर शॉट निराशा के अँधेरे से लड़ेगा 
ज़िंदगी मैच के बाद रौशनी से सराबोर होगी
खेल अब बिज़नस बन गया है 
खिलाडी बिक रहे है 
हर उठती तख़्ती खिलाडी की कीमत बढ़ा देती है 
साथ में खेल की भावना को थोड़ा और जला देती है 
खिलाडी आज हिट है  उसका अकाउंट सुपर फिट है 
स्टारडम की हज़ार रोशनियों में भी खिलाडी अंधकार में है 
खेल में अनेक आशाएं, उम्मीदे, नए सपने पनपते है 
ये बात तब की थी जब खेल का अर्थ खेल ही था 







मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

नूर की बून्द

कैसी होंगी वो आँखे जो मेरा आईना बनेंगी
जिन आँखों के उजालों में मेरे अँधेरे फ़ना होंगे 
समंदर सी अथाह उस नयी दुनिया में प्यार के रंग चलन से कुछ जुदा होंगे 
नूर की गिरती उन बूंदो की तलाश में कब से निकले है हम 

बड़ी उलझन है कब कहाँ मिलेंगी वो,जिनका इंतज़ार कितने जन्मों से है 
इशारे तो बहुत मिलते है मगर 
आँखों से बात करे वो मिलता ही नहीं 
सच तो ये है की आजकल कोई आँखों से बात करता ही नहीं

भीड़ में, तन्हाई में किस्सो में, कहानी में एक अक्स उभरता है अक्सर
कहाँ ढुँढू उसकी उन दो आँखों को 
जिनकी ख़ामोशी हमसे बहुत कुछ कहा करती है 
उन आँखों की महकती खुशबू हर ज़माने में बहा करती है 

रूह को  छूती  वो नूर की बून्द मुझे मिल जाये कही 
इससे पहले के डूब जाये दिल की कश्ती 
खुदा अब जल्द मिल जाये उन  आखों का किनारा कहीँ
नहीं तो इश्क़ का मतलब ही समझा दे ज़माने को सही 

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

देखो कोई चुपचाप तो नहीं आस-पास

vo aaj kal chupchap bahut rahta hai,childhood in pain








वो आजकल चुपचाप बहुत रहता है 
सड़क पर पत्थरों से खेला करता है
ट्रैफिक में गुम,हॉर्न से बेपरवाह चला जाता है 
बाहरी चोट से बेपरवाह ,भीतर के दर्द में जिए जाता है 
जो मैंने देखा उसे पास से गुज़रता इंसान क्यों नहीं देख पाता 

वो आजकल चुप बहुत रहता है 
मैदान में उसके दोस्त खुलकर हँसते है 
एक वही किसी कोने में गुमसुम नज़र आता है 
अनेक खिलखिलाहटों में एक उदास चेहरा क्यों छुप जाता है 
मेरी नज़रो ने जो चुप्पी समझी है 
वो दोस्त क्यों नहीं समझ पाते

वो आजकल चुपचाप बहुत रहता है
क्लासरूम में टीचर की आहट से सहम जाता है 
ब्लैकबोर्ड पर फैला उजाला जीवन का अँधेरा कम नहीं कर पाता है 
ख़ामोशी के जाल में फंसा मासूम बहुत घबराता है 
जो मैंने देखा उसे स्कूल का कोई सदस्य क्यों नहीं देख पाता है 

वो आजकल चुपचाप बहुत रहता है 
घर के कमरे में बंद खुद से भी नज़र चुराता है
आईने में खुद अपना अक्स देखकर घबराता है 
खाने की मेज़ पर खाने से रूठा नज़र आता है 
मेरी नज़रो ने जो दर्द समझा
वो माँ -पापा क्यों नहीं समझ पाते है 

वो आजकल चुपचाप बहुत रहता है 
जो बीती उसे खुद में समाये रखना चाहता है 
हिम्मत की जगह कायरता को क्यों चुनता है 
जो हँसता था पेट पकड़कर छोटी छोटी बातो पर 
आज निराश है हताश है चुपचाप है 
वो खुद ये क्यों नहीं समझ पाता है 



बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

माई ओन स्पेस

My Own Space










एक प्रश्न सब पूछते है खुद से 
रिश्तो के भंवर मे घिर कर 
बोलो क्या ढूँढ रहे हो घर मे यहाँ वहाँ
हर वक्त क्यों लगता है कुछ खो गया है कहीँ

एक ज़ंज़ीर का अहसास जब भी होता है 
द्वंद अंतर्मन मे तब चलता है
मेरा भी कुछ था जो खो गया है सरेराह 

कुछ ऐसा जिसने एक अजीब खालीपन से भर दिया है मुझे 
क्यों सहेज कर ना रख सकी उस जगह को जो मेरी अपनी थी 
कोई कहता है ये अतिक्रमण है, कोई त्याग तो कोई बंदिश 

होश आये इससे पहले लुट जाती है बस्ती 
अधिकार सिमट जाते है कर्तव्य बढ़ जाते है 
कुछ समझ आए इससे पहले सपनों के महल बिखर जाते है 

वक्त रहते दिख जाये कश्ती का सुराख़ तो अच्छा है 
डूबने के बाद जाने वाले को पुकारने से अच्छा है 
ज़िन्दगी के सफर में जगह दी है जिनको 
वो ज़िन्दगी में तुम्हे वो जगह दे तो अच्छा है 

जीवन मे कुछ वक्त चाहिए जो सिर्फ अपना हो 
सपनो का हमारे भी तो कहीँ कुछ वजन हो 
खीझ क्यों महसूस हो जीवन मे
घुटन क्यों सहें जीने मे

ये जो थोड़ा सा मेरा अपना वक्त होगा 
ख़ुशी की उसमें हर ख़ुशी से बढ़कर खनक होगी 
निराशा से लड़ने की ताकत मिलेगी
अंधेरे से लड़ने की हिम्मत मिलेगी 

युवा हो वृद्ध हो या वयोवृद्ध 
ये कुछ क्षण सबके अपने होते है
इन लम्हो को आप ख़ुशी का टॉनिक कह सकते है 
हम तो कहेंगे  ज़िन्दगी का "माई ओन स्पेस"







सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

काला चश्मा



मैं ब्रम्हा हूँ जो कहा वही सत्य बाकी सब मिथ्या 
अचरज है ये ब्रम्ह ज्ञान कुछ लोगो को विरासत में मिलता है 
कलयुग में ये ज्ञान काले चश्मे से बहता है 
कुछ यहाँ से सुनो कुछ वहाँ से सुनो फिर मुनादी करो 
मनुष्य का अपना सामर्थ्य और ज्ञान यहाँ आवश्यक नहीं 
सिर्फ चश्मा काला हो तो आकाशवाणी में परम आनंद हो 
आजकल आकाशवाणी फेसबुक पर ज्यादा गूँजती है 
सुरो को ललकारने के लिए असुर शक्ति का प्रयोग 
दूर से फेंके गए इस प्रक्षेपात्र का असर विज्ञापन के साथ
अंदाज़ नया है पर काला चश्मा वही 
काले चश्मे से ना सिर्फ उजाला भी काला नज़र आता है 
बल्कि दिमाग का जाला भी नज़र आता है 
इंसान खुद को ईश्वर तुल्य समझता है अपनों का अनादर करता है 
सच तो ये है पहाड़ी पर बैठा वो भ्रम में जीता है 
ज्ञान की गंगा बहाता है और खुद पानी से भी डरता है (अहम् ब्रम्हास्मि )

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

संवेदनशील हूँ,मनुष्य हूँ

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मैं भारतीय हूँ गहन संवेदनाओ से ओत प्रोत 
ये मेरी कमज़ोरी है या मेरी ताकत,जानती हूँ 
मेरे साथी मुल्क हमारी मानवीय संवेदनाओ को कितना भी परखे 
मुझे मेरे संवेदन शील होने पर गर्व है 
कही पढ़ा है मैंने जो संवेदना हीन है 
वो मनुष्य नहीं ...
रोमानिया के विषय में पढ़कर जाना एक मैं ही नहीं
संवेदना की नाव में सवार 
कही मेरा कोई साथी भी इस नदी में पतवार का सहारा लिए ज़िंदा है 
हर क्रिया की प्रतिक्रिया में भी इसका भाव  है 
भाव के बिना असर मुमकिन नहीं 
खुद में खुद को महसूस करने की ताकत तो सबको बख्शी है खुदा ने 
गैरो को अनुभव कर सके वही संवेदना से भरा कहला सकता है 
सिर्फ आकृति मनुष्य जैसी होना संवेदना से पूर्ण होने का ध्योतक नहीं 
हिटलर भी तो इसी जाति का हिस्सा था  
इश्क़ की खूबसूरती में भी संवेदना का पुट होता है 
फिर जलन में भी तो एक अहसास ज़िंदा है 
दिल से जुड़ना,महसूस करना ये कब से मनुष्य जाति की पहचान नहीं 
मैं भारतीय हूँ और अब तक मनुष्य हूँ 
गहन संवेदनाओ से ओत प्रोत 

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

और कहानी ख़त्म ...

अनगिनत कहानियां शुरू हुई मेरे आस पास
पात्र ज़िंदा और कहानी हर बार बुझती हुई
कभी धीरे से कुछ सुलगता, भभकता, धुंआ छोड़ता
कुछ समझ आये इससे पहले कहानी फिर राख़ हो जाती

कुछ खंड काल हर कहानी के एक जैसे होते है
बस कही दर्द पहले तो कही बाद में है
कहानी का किरदार सोचता है रुख बदलना मेरे हाथ में है
वो कौन है जो उनके हाथ से डोर उड़ा ले जाता है

बदलते ज़माने के साथ ज्यादातर कहानियां फैशनेबल हो गई
कठपुतलियो के लिबास कुछ कम और ज्यादा रंगीन हो गए
शब्द और ज्यादा कठोर और भाव तो लगभग नदारद ही हो गए
छीन लिया खुद से ज़िन्दगी का आभास जो थोड़ा बहुत बाकी था

आजकल शुरू होते ही कहानियां दम तोड़ देती है
हाथ मिलाकर एक दूसरे से विदा लेती है
छूटे साथी को एक नयी कहानी का पता भी देती है
अब कहानियो में ज़िन्दगी नहीं होती

कहानी की लय, ताल किरदार सब मर चुके है
मृत पात्र किस कहानी को ज़िंदा रख सकते है
कहानी से ऑक्सीजन ख़त्म का अर्थ कितना भयानक है
वीराना पृथ्वी पर इसके उदभव की कहानी कहता है







बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

शून्य की शक्ति


power of zero,zero is equal to infinity










शून्य के आगे उज़ाला है
शून्य के पीछे घना अँधेरा
सियाचिन की ठण्ड में जीवन कहाँ
शून्य से नीचे पारा यहाँ
आर्य भट्ट ने शून्य की खोज की
 जग को मिला उजियारा

उत्पत्ति की खोज को आधार मिला
जब शून्य का जन्म हुआ
क्यों कहती हूँ मैं मुझसे मत मिलो
अभी मैं शून्य में हूँ  क्योकि
आरम्भ पर जाना ज़रूरी है आगाज़ से पहले

जीवन में शून्य ना हो तो आरम्भ कहाँ से हो
अंत अगर शून्य पर ना हो तो मोक्ष कैसे हो
पृथ्वी गोल है और शून्य उसके समानांतर
दिन ढले तो रात हो,रात ढले तो दिन
जीवन ख़त्म होता है और फिर कही किसी का आरम्भ