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चारो ओर फैली वहशियत
गवाह है कि इंसान कम ही
बाक़ी बचे है धरती पर
रुको,सोचो
कितने प्रतिशत
इंसानियत बाक़ी बची है
हम सभी में
रूप इंसान का
काम जानवर का
जिस वहशियत के
नुमाइंदे हो तुम
ये दरिंदगी तो
जंगल में भी मुमकिन नहीं
इंसानी शक्ल में
दरिंदो की पहचान
बड़ी मुश्किल है
आवाज़ मीठी
नीयत खोटी रखते है
चेहरा आईने में
रोज़ देखते है
आत्मा में
झाँकने से डरते है