मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

उड़ते परिंदे

fly high to return back

Pic Courtesy: Meri Syahi Ke Rang

जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है
स्वछन्द विचार कितने भी हो
घर की चार दीवारी से टकराते है
पाने को सारा खुला आसमान है
खोने को कुछ गज़ का मकान है

थक कर चूर जब हो जाओ
पंखो को विराम भी दो
पीछे छूटे साथी का इंतज़ार भी हो
लौट आओ जब संध्या हो
उड़ने की कोई वजह ना हो
छोटी सी ज़िंदगानी है
अपनों संग भी बितानी है
जीत के तुम संसार को
हार ना जाना परिवार को

मुट्ठी भर दिन जीवन के
कुछ सपनो में, कुछ उड़ने में
बोलो धरती पर लौटोगे कब
रिश्तो की बगिया में महकोगे कब
जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है

छोटी सी उम्र में सपने बड़े
जिनसे सीखा उड़ना उनको क्यों कुचल चले
सूरज तक तुमको पहुँचना है
बादल के संग ही उड़ना है
अनुभव और परिश्रम बिन
जीत का फल भी खट्टा है