मंगलवार, 31 जनवरी 2017

ये रंगे पुते चेहरे


fake people,ye range pute chehre














एक उम्र बीत गयी उन लोगो से मिलते जुलते 
जिनके चेहरे पर एक और चेहरा तब से था
जब से मैं खुद से अनजान और उनसे ख़बरदार न थी 

बचपन की अठखेलियां बीती जिन बरामदों में
आज उन घरो के द्वार पर पांव रखने का क्यों मन नहीं 
घर के किसी सदस्य के चेहरे का रंग धुल गया है अब 

शिक्षा के मंदिर में मूर्तियों का रंग भी उजला नहीं है शायद 
नहीं तो अखबारों की सुर्खियां इतनी भयावह नहीं होती 
वो कौनसा दर है मेरे मौला जो रंग छोड़ता नहीं  

एक मुकाम हासिल हो और जीने के लिए कुछ अर्ज़ित हो 
ये सोचकर घर से निकले थे हम 
क्यों वहां भी नज़र आये वही रंगे पुते चेहरे 

हर दर से निराश होकर खुद को समर्पित किया जिस दर पर
हाय क्यों यहाँ भी प्रांगण में रंगों की अनवरत नदी बह रही है 
एक रंग मालिक ने सबको दिया 
फिर क्यों नया चोला स्वार्थवश ओढ़ लिया सबने

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

बाबूजी के जाने के बाद




My Father My strength,babuji ke jane ke bad

हज़ार रोशनियों का शहर आज उदास क्यों है
शहर में आज हर चेहरा दिखता जर्द क्यों  है
क्यों अचानक शिथिल हर आवाज़ लगती है
सुबह की ताज़गी भी बोझिल सी महसूस होती है
अब तो पंछियो की चहचहाट शोर सी प्रतीत होती है
क्यों मेरी आँखों से काजल सुबह से धुला सा है
इन आँखों का सूनापन किस चेहरे को ढूंढता है
बगीचे में जाकर देखा तो फूलो का रंग भी कुछ फीका है
रसोई से बर्तनों का शोर अब गायब है
बस बाबूजी की आवाज़ रह रह कर सुनाई देती है
एक प्याला चाय स्पेशल वाला जरा लाना तो बिटिया
अब  कहेगा कौन मुझसे ये,बाबूजी की छड़ी बताना
बगीचे में कबूतरों का झुण्ड इंतज़ार में है
कौन देगा चुग्गा उनको इतने प्यार से, सम्मान से
प्रश्नों के लगे जब अम्बार और मौन हो गए सारे जवाब
दर्द हद से बढ़ता रहा और दिन के उजाले में फैलता रहा
हज़ारो रोशनियां मद्दम पड़ने लगी और दर्द का आकार बढ़ता रहा
मेरे शहर में किसी के न होने का अहसास कितना गहरा है
अभी तक यहाँ दर्द ने सबको ख़ामोशी से बांध रखा है
आसमान की चादर आंसुओ से भीगी जब तक है
मेरे शहर की हर शय अपनी सी लगती रहेगी
रिश्ता तो एक मेरा खो गया है तारों में
फिर मेरा शहर मेरे साथ भला रोता क्यों हैं

गुरुवार, 26 जनवरी 2017

मेरा नाम ले लेकर सरहदों की अंतहीन खुद को सजा दी है

Mera naam le lekar sarhado ki antheen khud ko saja di hai


मेरे घर की मुंडेर पर बैठी चिड़िया तू कितनी भाग्यवान है
तेरी उड़ान का कोई छोर नहीं, तुझे बांध सकी सरहद नहीं
तू धन्य है तेरे समाज, तेरे झुण्ड में किसी कायदे की फेहरिस्त नहीं
अच्छा है बस चलता नहीं इंसान का बहती हवा पर
सिर्फ इसलिए सरहदों में हवा को बंद रख सकता नहीं
इंसान को रचने वाला भी सरहदों से गुज़रता है जब
सरहद की कटीली झाड़ियों में फंसा सोचता है तब
इतनी दर्द भरी ज़िन्दगी क्या कोई खुद अपने लिए रचता है कभी
मैंने नदी को बहने दिया,पक्षियों को खुला आसमान दिया
पवन को बहने का आदेश दिया
सब मेरे आदेश के निहित बहते है एक इंसान ही है जिसने मेरी अवहेलना की है
मेरा नाम ले लेकर सरहदों की अंतहीन खुद को सजा दी है 

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

इश्क़ अँधेरे से झांकता रहा

ishq andhere se jhakta raha,no one loves,love
प्यार की गलियों में इश्क़ की जगह नहीं होती 
मैं प्यार का दम भरता रहा, पर इश्क़ न कर सका कभी 
चाँद तारे तोड़कर आँचल मे बिछाना चाहता था 
प्यार के सारे कायदे भूल जाना चाहता था 
इश्क़ को किसी कोने में खड़ा करके
प्यार की हर रस्म निभाना चाहता था 
ज़िद पहाड़ो से टकराने की थी मगर 
क्यों इश्क़ को बेखबर रखना चाहता था 
साथ निभाने के वादे किये, सात छिपकर फेरे लिए 
प्यार मे उसके सफर भी बहुत किये 
इश्क़ से नज़र चुराकर सफर मे साथ निभाने की कसमे भी खाई 
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर उसके सुख दुःख की खबर भी रखी 
प्यार के नाम पर कुछ राज़ खुले घर द्वार मे 
अपनों की कसम लेकर प्यार को रुस्वा किया 
इश्क़ की कब्र भी खोदी प्यार का दम भी भरा 
अपनी नज़र के चोर को दिल के दरवाज़े मे दफन किया 
जहाँ भी रास्ते प्यार की मंज़िल के दिखे
रास्तो पर दर्द की नुकीली झाड़ियां ऊगा दी 
महफ़िलो मे गैरो की प्यार के गीत गुनगुनाते  रहे 
इश्क़ तब भी अँधेरे से झांकता रहा 
प्यार का दम भरने वाले आशिक को निहारता रहा 
वो बेबस था, समझता था, ये इश्क़ नहीं आसाँ

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

बहता वक्त

वक्त कब किसके लिए ठहरता है
जो समय के साथ बहता है गतिमान रहता है
नया चलन नहीं नए शब्द है
वक्त के साथ ना चलने वाला आउटडेटिड हो जाता है
समय की रीत कल भी यही थी आज भी यही है
सदिया गुज़र गई घड़ी की सुई नहीं थमी
 ईश्वर ने पृथ्वी पर जीवन बसाया फिर पक्षियों ने घोसले बनाये
आदि मानव ने कंदराओ से निकलकर शहर बसाये
शून्य से हर बार क्षितिज तक खूब दौड़ लगाई
युग पर युग बीत गए पर समय की मार से ना बच पाया कोई
तभी तो कहते है बड़े बुज़ुर्ग समय कब किसके लिए एक जैसा रहता है
समय तो बहता है और जो उसके साथ चलता है बस वही जीता है

सोमवार, 2 जनवरी 2017

विचार शक्ति

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  विचार शक्ति

विचार कितने बदले, कितने आज़ाद हो

क्या विचारो को किसी पहरे की ज़रूरत नहीं ?

सोचो कितना कुछ अंधकार में ढल सकता है
अगर विचारो के प्रवाह की धारा ना हो सही

मोल शब्दो का समझना भी ज़रूरी है दोस्त
आखिर विचारो के बहाव का जरिया शब्द ही तो है

स्वछन्द मन, स्वछन्द विचार और समझदार कलम
ज़रूरत है मेरे देश को उस लेखक की दोस्त
जो लिखे तो तोलकर जो बोले तो मोल जानकर

भ्रम,द्वेष,इर्ष्या,की काई विचारो ने जो खाई
समाज के पतन को फिर कौन रोक सके मेरे भाई

फेसबुक,ट्विटर सोशल नेटवर्क है बहुत ज़रूरी पर
इनकी उपयोगिता का इस्तेमाल भी हो उतना ही सही

सोशल साइट्स पर युद्ध अनर्गल करने से बेहतर है
वैश्विक एकता,समस्याओं,समाधान,के विचारो का प्रवाह हो यही
इन्टरनेट की शक्ति को मानव जाति की रक्षक बनाये भक्षक नहीं