शनिवार, 15 अप्रैल 2017

बाढ़ ग्रस्त श्वेत नदी

Pic Courtesy -Naiduniya
तन गोरा मन काला
ये मेरे देश की रीत नहीं
मन उजला हो प्रीत भरा हो
बैर से नाता जिसका ना हो
मेरे देश की प्रीत यही
श्याम सुन्दर छवि मोहन की
हर मन में बसती हो जहां
मोरा गोरा रंग लेले मोहे श्याम रंग दे दे
कहती है जहां की नारी सदा
गोरे रंग का मोह वहां कब कैसे चढ़ा
स्वर्ग सी सुन्दर धरती पर
रंग भेद का माया जाल किसने बुना
कब बदली रीत कि मिट गयी प्रीत
जो बह गई श्वेत नदी में
श्वेत नदी की चाह में फंस गए
आज के मोहन सारे
राधा गोरी श्याम भी गोरा
रंग बदल कर चाल बदलना
 नए ज़माने की रीत यही
तन की भक्ति मन की निंदा
आज हमारी पहचान यही
क्यों भूल गए हम
मन उजला हो प्रीत भरा हो
बैर से नाता जिसका ना हो
मेरे देश की प्रीत यही

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

किश्तों में सजा तैयार

dirty politics,Ambitions,hardwork,less work more money and power
Pic courtesy:The Website Geographer

युद्ध सामने से लड़ने की प्रथा पुरानी हो गई
दुनिया में रीत पीठ पीछे साजिशे रचने की हो गई
हंसकर अभिवादन करना,मदद का हाथ बढ़ाना
पलटते ही व्यंग प्रहार करना,साथी को गलत राह दिखाना
नए ज़माने की कितनी सरल प्रीत बन गई
मेहनत का फल मीठा होता है परिभाषा ही बदल गई
मेहनतकश को गिरा कर रास्ता बनाना कालजई तकनीक बन गई
मैं से शुरू होकर जो रास्ते हम बन जाते थे
उन रास्तो के रोड़े बन गए झूठे अहम् के पत्थर
कभी सम्मान की खातिर जान देते थे जो सज्जन
ईमान से बढ़कर उनका ओहदा हो गया है
सबक क्या दोगे नयी पीढ़ी को
वहाँ भी सफलता का मतलब महत्वाकांक्षाओ को पाना है
फर्क किसको पड़ता है मेहनत के फल की मिठास से
हमें तो चाहिए बढ़ते जीरो ज़िन्दगी से बड़े सेविंग अकाउंट में
अपनी बात का बिना बात वजन बढ़ाना
जीवन मूल्यों की लाश पर अपने मैं का घर बनाना
अगर यही दोगे तुम समाज को
सूद समेत किश्तों में सहोगे बदलते मूल्यों का हिसाब
समय है ठहर जाओ सोचो कहाँ गलत हो तुम
वक्त निकलने पर लकीर पीटने से बच जाओ तुम

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

उड़ते परिंदे

fly high to return back

Pic Courtesy: Meri Syahi Ke Rang

जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है
स्वछन्द विचार कितने भी हो
घर की चार दीवारी से टकराते है
पाने को सारा खुला आसमान है
खोने को कुछ गज़ का मकान है

थक कर चूर जब हो जाओ
पंखो को विराम भी दो
पीछे छूटे साथी का इंतज़ार भी हो
लौट आओ जब संध्या हो
उड़ने की कोई वजह ना हो
छोटी सी ज़िंदगानी है
अपनों संग भी बितानी है
जीत के तुम संसार को
हार ना जाना परिवार को

मुट्ठी भर दिन जीवन के
कुछ सपनो में, कुछ उड़ने में
बोलो धरती पर लौटोगे कब
रिश्तो की बगिया में महकोगे कब
जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है

छोटी सी उम्र में सपने बड़े
जिनसे सीखा उड़ना उनको क्यों कुचल चले
सूरज तक तुमको पहुँचना है
बादल के संग ही उड़ना है
अनुभव और परिश्रम बिन
जीत का फल भी खट्टा है