शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

दम घुट रहा था अब तक

life in hell

घुटन थी दरवाज़े के उस पार 
ना आवाज़ सुनने वाला था कोई 
ना आवाज़ निकलने देता था कोई 
सिर्फ आँखे बोलती नज़र आती थी 
मगर उस भाषा का जानकर ना था कोई 
होठो के बीच फंसे अपने ही शब्दों की 
आवाज़ सुनने का मन करता है 
आज खुलकर सांस लेने का मन करता है 
ज़िन्दगी नाम की थी जिस शख़्स के 
उसके हर सितम का जवाब दे सकती हूँ मैं 
आज लगता है हवा का रुख बदल रहा है 
छोटे ही सही इस ठन्डे झोंके को 
सलाम करने का मन करता है 

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

आज की सुर्खियां


aaj ki surkhiyan

Pic Courtesy:
कल का अख़बार कौन पढ़ता है यहाँ
नई दुनिया की बात करता है जहां

कल की सीढ़ी पर पैर रखते है सभी 
आज की ऊंचाइयां छूने के लिए 

पुराने घाव रिसते है जहाँ  
नए सफर सफल होते है वहां  

अनुभव की पीठ पर सवार है जहां 
सुर्खियों में बात सिर्फ आज की होती है यहाँ?

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

कोहरा

Fog
Pic Courtsey :google
रंगीन चश्मे की
आज ज़रूरत नहीं
कोहरे ने दूधिया
मौसम जो कर दिया
रौशनी चुभती थी
कुछ आँखो को
मावठ की सुबह ने
उन ज़र्द चेहरों को ढक दिया

शनिवार, 9 दिसंबर 2017

एक नयी दुनिया बनायें

ek naya suraj
Pic Courtesy:Toddler.org
कुछ सीखो रोशनी से 
कुछ अंधेरो से सबक लो 
रचकर इतिहास नया 
रच दो एक बेहतर दुनिया 

कुछ फूलो सा महको 
कुछ सागर सा गरजो
जिनकी  राह ना कोई 
उनकी सड़क बन जाओ

अडिग पर्वत से बनो 
कोमल रहो लेकिन मन से 
बदल दो दुनिया की चाल
बदलकर अपनी चाल 

प्रकृति की सुन्दर कक्षा
मन के नैनो से पढ़लो 
जीने का अंदाज़ यही 
खुद जिओ और जीने दो 

मंगलवार, 21 नवंबर 2017

इश्क़ के रंग

Courtesy :Picsabay

इश्क़ के न पूछ रंग कितने सारे है 
बेरंग सी दुनिया में इंद्रधुष की मानिंद 

आँखे झील सी, शहर गुलाबी नज़र आते है 
श्वेत सी चादर पर कमल नए खिल जातें है 

ज़िन्दगी में एक नयी महक का अहसास होता है 
बिन वजह होठो पर मुस्कान ठहर जाती है 

पांव ज़मीन पर नहीं रहते 
सपनो को पंख लग जातें है 

मत पूछो हाल  इश्क़ यारो 
तबियत इश्क़ में 
कभी बेहतर,कभी रूठी नज़र आती है 

शनिवार, 11 नवंबर 2017

ज़हरीला इंसान और लोक कथाएं










Pic Courtesy: स्त्री काल 
ज़हर खुद उगलते है 
इल्ज़ाम हम पर लगाते है 

ज़िक्र कहानियो का करते है 
दास्ताँ अपनी सुनाते है  

रुसवा सरे राह करके बार बार 
हमसे प्यार का इज़हार चाहते है 

बदल गए ज़माने के रंग मगर 
बेरहम औरत की तकदीर निकली 


गुरुवार, 2 नवंबर 2017

आज़ादी -New Woman

New Woman
Courtesy: The happy world.com
कुछ गफलत में ज़माना है
मौन तोड़ उसे बताना है
किस्मत बुलंद है मेरी
बारी है पत्थरो के पिघलने की
सहनशक्ति ताकत है मेरी
सहना मेरी मज़बूरी नहीं

हार जीत में बदल दूंगी
इरादे नेक है,रास्ते अनेक है
सफर किया तेरे साथ जितना
सफर तय कर सकती हूँ
सपनो की मंज़िल का
सहनशक्ति ताकत है मेरी
सहना मेरी मज़बूरी नहीं

संस्कार की बलिवेदी तुझे प्रणाम
बांधने लगी जब ज़ंज़ीरे
जकड़ने लगी जब तकदीरे
उन्मुक्त गगन से पता पूछा
एक नयी मंज़िल का
बांहे पसार तैयार हूँ उड़ने को
सहनशक्ति ताकत है मेरी
सहना मेरी मज़बूरी नहीं



शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

धुँए में ज़िन्दगी ...( नशा ही नशा है )

Pic Courtesy : Word Press.com

नशे में है जग सारा 
कही नींद कहीं 
मह का साया 
कही सौंदर्य जाल
कही ग्लैमर की माया 
लड़खड़ाए कदम
बहकी आवाज़ें
नशे की गिरफ्त में 
शरीर से..आत्मा ज्यादा 
बातें कुछ कम
शोर बहुत ज्यादा 
साहस सिमटा
दंभ ने घेरा
मंद पड़ती जिज्ञासाएं
तीव्र होती आकांक्षाएं 
जल्दबाज़ी में बढ़ती ज़िंदगिया 
देरी से मिलती राहें
फिर भी पहचान ना पाए 
क्यों खो रही हैं
तेरी मेरी नयी राहें


शनिवार, 16 सितंबर 2017

ओल्ड इस गोल्ड

Missing Gold
Pic Courtesy :Flickr
सरलता सहजता 
गुम जब से हो गयी
ज़िन्दगी अजनबी 
कुछ और बन गयी है 

दोस्त बन रहे है
तकनीक और तेजी 
मिलावट का नया 
दस्तूर बन गया है 

मिठास की जगह 
मीठी बातों ने ली है 
अपनों की जगह 
बेगानो की झड़ी है 

सादगी की जगह 
भड़कते श्रृंगार ने ली है 
प्रकृति का मोल घटा 
विकसित नई पीढ़ी हुई है 

ओल्ड इस गोल्ड 
कहते है क्यों सोचो
खो गया है क्या 
बदलते युग की भीड़ में देखो

सरलता सहजता 
गुम जब से हो गयी
ज़िन्दगी अजनबी 
कुछ और बन गयी है 

बुधवार, 6 सितंबर 2017

नींव का सोना

Strong foundation








Pic Courtesy:Midday
सोना पिघलकर जब शख्सियत में तब्दील होता है 
दमक ललाट की अंधेरो में उजाला भर जाती है
पथरीले रास्तो पर चलकर घायल हुए जो इंसान
समय की आँधियो से लड़कर उभरे जो चेहरे
वही दीपक निराशाओ से लड़कर ज्योत जगाते है 

लहू और पसीने की कीमत जान कर बनी जो तकदीरे
वही पत्थर तराशकर अब हीरे को आकार देते है 
गुमनाम चेहरों को नाम तलाशने में मदद करते है 
हाथ से हाथ मिलकर बनता है कुछ ऐसे कारवां 
यही रैला चला जीवन की विषमताओं से लड़ने 

सफलताएं किसी थाली में सज कर नहीं मिलती
विषमताएं समाज की बिन आवाज़ उठाये नहीं मिटती
कितने दब जाते है नींव की मानिंद
कंगूरे बन जाते है श्रेय के हक़दार 
तालियों की गड़गड़ाहट  क्या छीन सकती है
किसी दमकते चेहरे की आभा 

सोमवार, 14 अगस्त 2017

वो सुबह कैसे आएगी ....

The dawn,Morning

Pic Courtesy:Fine Art America

इंतज़ार अभी तक बाक़ी है ..प्रश्न अभी कुछ बाक़ी है
वो सुबह कैसे आएगी ....बरस गए, हम तरस गए
शाखों के पत्ते कुछ सूख गए, कुछ टूट गए
उठते है जो कुछ कदम भी तो
उस जलती हुई शमा को यहाँ ...
घनघोर अँधेरा निगल जाये
वो सुबह कैसे आएगी ....
वो सुबह कैसे आएगी ....

कुछ आलम है कुछ बालम है सपनो के यहाँ सौदागर है
बहकते हुए कदमो के लिए सोने की यहाँ ज़ंज़ीरे है
चहकते हुए चेहरों के लिए ग्लैमर के सिवा न कोई छोर है
नींदो के भंवर में कश्ती फंसी ह्रदय के भंवर में सपने मरे
वो सुबह कैसे आएगी ....वो सुबह कैसे आएगी ....

प्रश्नो के बढ़े अम्बार यहाँ.. सवालो का ना कोई ज़िम्मेदार यहाँ
एक आगे बढ़ता है सौ पीछे हटते है
कागज़ के महल बनते है यहाँ, एक हस्ताक्षर से बिकते है वहां
पढ़ते है कहाँ ...बढ़ते है कहाँ ..माँ बाप को बोझ अभी तक कहते है यहाँ
ये सुबह कैसे आएगी
वो सुबह कैसे आएगी ....



शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

मौन सत्य

truth is silent
Pic Courtesy:VirtuaGYM
कहीं कुछ बह रहा है 
बिन आवाज़ 
कहीं कुछ जल रहा है 
बिन गंध 
कहीं मेघ बरस रहे है
बिन सावन
कहीं कोई बहक रहा है
बिन वजह
कहीं कोई गिर रहा है
बिन वजह 
कहीं रात ढल रही है 
बिन चाँद 
कहीं साज बज रहे है 
बिन बात 
कहीं बात बढ़ रही है 
बिन बात
हालात बदल रहे है 
बिन बात  
इंसान जल रहे है 
क्यों बिन बात 
कैसे पाऊं वो नज़र 
जो समझे इस मौन सत्य का राज़

बुधवार, 2 अगस्त 2017

दो भारत

I love my India,IndiaPic Courtesy :Firkee.in
एक देश दो तस्वीरें
कही आज़ादी, कही बेड़ियाँ
एक देश मेरा, एक गांव मेरा
कहीं बहता पानी,कहीं दलदल की वही पुरानी कहानी
सिर गर्व से उठता है जब आकाश फ़तह हो जाता है
फिर नीम्बू मिर्ची के ज़ख्मो से मन आहत हो जाता है
एक कदम बढाकर थमना ना जाने
दूजा रूढ़िवादिता के भंवर से निकलना ना चाहे
कहीं विकास की निशानियां, कहीं पतन की कहानियाँ
जग कहे एक नयी उम्मीद है भारत
हम कहे सोचो कैसे एक हो भारत
अधिकार सशक्त, कर्तव्य निशब्द
बेजोड़ सभ्यता संस्कृति की यहाँ असीम निशानियां
एक देश दो तस्वीरें
कही आज़ादी,कही बेड़ियाँ  

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

डूबता सूरज जागते अरमान

Rise and fall,Sea beach stories,love story
Pic Courtesy:Red Sky Sea Beach
हम लेकर बैठे जहाँ सपनो का संसार 
वो समंदर किनारा,जहाँ मिटटी का घर 
रोष मिटते रहे,ख्वाहिशे पलने लगी 
लहरों के हिलोरों में साँझ प्रेम गीत लिखती रही
आँखों में नवीन एक जगत रचती रही 
बीती हुई रतिया को मीठे जल से धोती रही
एक ज़िन्दगी बहकती रही,एक ज़िन्दगी महकती रही
चाँद आकाश पर आकर ठहर गया था वहां
नीचे उसे छूने को कसमो की झड़ी थी लगी
रात चांदनी थी मगर स्वप्न रोशन ना हुए
सपनो में शायद उम्मीद की किरन ही ना थी
हसरते दफ़न हुई सागर की अथाह गहराई में
एक कहानी फिर मिट गयी, रह गई साँझ तन्हाई में  

बुधवार, 19 जुलाई 2017

घर

Mera Ghar,Rented houses,

Pic Courtesy: Suncity Jodhpur
तिनका तिनका जमा किया 
क्यों हमने किराये के घोसले में 
कुछ वक्त खुशी में बीत गया 
एक दिन आंधी का झोंका आया 
घर में बसा हर एक सामान धूल हुआ 
कुछ यहाँ था, कुछ कहाँ था 
अब इसका हमें कहाँ पता था 
जीवन के कुछ अनमोल पल रूठे से महसूस हुए 
रसोई से उठती भीनी खुशबू 
जो घर को बांधे रखती थी 
वहां अब सिर्फ ख़्वाहिशें शेष बची थी 
आँगन की दीवारों पर चित्रों की अपनी बस्ती थी
मुन्ना की आँखों में बस्ती से दूरी का रोष भी था
यूँ तो घर शहर से दूर ही था 
फिर भी उसमे समाया सपनो का संसार तो था 
मालिक मकान के उलाहने ख़त्म हुए 
हम अब घर से बेघर हुए 
जान लिया घर हो तो अपना
सपनो पर किसी और का हक़ क्यों हो 
खुलकर जीना शर्त है मेरी 
किराये के घर में गुजारा क्यों अब भी दुविधा है मेरी 

सोमवार, 17 जुलाई 2017

अंतर्नाद

antaraatma ki aawaz,Voice of heart
Courtesy: Patheos.com
ये कैसा शोर है 
मौन है पर 
अंतर्नाद सुनाई देता है 
चेहरा भावविहीन है 
दर्द फिर भी दरकता है 
शब्दों पर विराम है 
कागज़ फिर भी व्यथा कहता है 
व्यक्तित्व मज़बूत है जितना
मोम ह्रदय बह रहा है उतना
जीवन में संयम बरता जितना 
मौत पर हंगामा बरपा उतना 
बेजान शरीर निढाल पड़ा है 
सजीव लाशे आस पास मंडरा रही है 
सिर्फ एक प्रश्न सामने खड़ा है 
आज अग्नि समर्पण किसका है ?

सोमवार, 10 जुलाई 2017

तिमिर तेरा शुक्रिया


Darkness,Thanks,Frigntened,Afraid,Sunlight,Sunray,Pain
Pic Courtsey-MikkoLagerstedt
मैं तम से न डरी तो तिमिर ने आ घेरा 
ये कदम फिर भी बढ़ते गए 
मुश्किलों से टकराते हुए हौंसले बढ़ते रहे 

रुक कर संभाला जिन परिस्थितियों को 
वही से कुछ अमिट घाव फिर मिले
दर्द और तिमिर का आवरण जकड़े मुझे
उससे पहले रौशनी के च्रिराग जलाये मैंने 

तमस के स्नेही जग को नमन मेरा 
जिसने लौ जगाने का मौका दिया 
जगमगाते बीहड़ से निकलकर करूँ 
एक नयी सुबह का शुक्रिया 

तमस की हर घडी को सलाम मेरा 
तप कर निखरने का मौका दिया 
अस्तित्व मेरा तमस के कारण है 
भोर की पहली किरन 
तू अभिवादन स्वीकार कर मेरा 

सोमवार, 12 जून 2017

कलम का संघर्ष

pen's conflict
Pic Courtsey:Huffingtonpost.com
शब्दों की ताकत गुम होने लगी 
मेरी व्यथा का रंग गाढ़ा और हुआ 
कलम रुकने का अहसास मुझे से पहले 
शब्दों की गुम होती वर्णमाला को हुआ 

पीर बड़ी हो गयी कलम से 
शब्द राह भूल गए तभी से 
कासे कहु पीर नीर भरी अखियन की 
जो सहू कुछ कहु कुछ बहूँ 
अविरल व्यथा फिर भी कह ना सकू 

बहाव कितना भी तेज क्यों ना हो
आवाज़ दबी सी रहती है
छपाक से कुछ गिरा कलम से 
दर्द टपकने का आभास कम हुआ तभी से

एक सहेली कलम है मेरी 
बिना इज़ाज़त लिखती भी नहीं 
सहने का इरादा मेरा है
मुझसे अलग तब भी होती ही नहीं 

शुक्रवार, 26 मई 2017

जीवन के दो भाग

Sorrow and happiness,One goes another comes
Pic courtsey:Blogger Zindagi Ke Rang
सुख का सूरज दुःख की रैना
दो आँखों का गहरा नाता
झर झर नैना नीर बहाये
सुख आये या  दुःख आये

काम क्रोध और मोह का नाता
सागर में भी हलचल ले आता
जीवन के अचूक दो घेरे
कौन बचा इनके फेरे से

सुख में बीते लम्हो को
ढूंढते है दुःख की घडियो में
सुख का सूरज आस बंधाता
दुःख को थोड़ा कम कर जाता

सुख में दिखे ना दुःख की रैना
मन बांवरा चला आकाश भ्रमण को
जब गिर जाये आसमान ज़मी पर
समझ ना आये दुःख के बदरा
कैसे ये कहाँ से घिर आये

सुख में मुस्काना लेकिन
तुम ये भूल ना जाना
दुःख की रैना का भी तय है
जीवन में आना

दुःख का अमृत चख कर देखो
जीवन परिष्कृत हो  जाता है
स्वप्न  से सुन्दर सुख के फेरे में
इंसान स्वार्थ नगरी में खो जाता है


मंगलवार, 23 मई 2017

उम्मीद और क़ायनात


Ray of hope,God's creation

Pic courtsey Astrospeak
कायनात की हर शय रंग बदलती है
कभी सुंदरता का नया इतिहास गढ़ती है
कभी रौद्र रूप से ब्रम्हांड को भयभीत करती है
कभी सौम्य छटा शांति का सन्देश देती है
प्रकृति की हर छठा में एक निर्देश निहित है
हर निर्देश भविष्य की अचूक परिपाटी है
हर दृश्य  में आलौकिक प्रकाश है
जीवन में लौ भरने की असीम ऊर्जा है
निरंतर कुछ ऐसे प्रस्फुटित होती है
मुरझाये जीवन में नयी तरंगे!
ये रंग बदलते नज़ारे जो जीवन संचालित करते है
हर मन उस शक्ति की खोज में है
जो क़ायनात में रंग भरती है
सत्य है दिव्य शक्ति का अहसास ही है
उम्मीद की वो किरन
जिस पर जीवन कायम है 

बुधवार, 17 मई 2017

वक्त ने बदली चाल

wakt ne badli chal,time
Pic Courtsey :Pics about space.com
वक्त  जितनी  तेजी  से  भाग रहा है
मुद्दे उतनी तेजी से चुप होने लगे है
बड़े से बड़े तूफान पर मरहम रख देता है वक्त
हर दर्द भुलाया जा सकता है वक्त की करवट में
चीखे मद्दम पड़ जाती है वक्त गुजरने के साथ
जीती जागती ज़िन्दगी लाश बन जाती है
लाश की तस्वीर दीवार पर रह जाती है
एक रोज़ तस्वीर भी वक्त की भेंट चढ़ जाती है
इस पीढ़ी को याद नहीं अपनी पिछली पीढ़ी
क्यों लगता है वक्त से तेज ज़िन्दगी भाग रही है
सदियां गुजर जाती थी  जिन रिश्तो को बनने में
आज कुछ लम्हो में प्रगाढ़ रिश्ते बन भी जाते है
फिर कुछ समय में वक्त की भेंट भी चढ़ जाते है
ये वक्त भी सोचता होगा ज़िन्दगी की स्पीड देखकर
अगर मैं रुक सकता तब भी क्या तुझको थाम सकता
सबक नया सीखा है मैंने
ज़िन्दगी तेरी चाल देखकर
अब मैंने  भी रफ़्तार से बहना सीख लिया  

गुरुवार, 4 मई 2017

राम है जीवन दर्शन













Courtesy:Ram Raksha Strot
जितना सरल राम का नाम उतनी जटिल राम की लीला
सौम्य तेजमयी जितनी छवि कठिन तपस्या उतनी रही
सत्य से बढ़कर धर्म नहीं वचन से बढ़कर जीवन नहीं
मनुष्य की शक्ति राम की भक्ति राम है जीवन दर्शन
विश्व ने जाना कृष्ण को राम उन्ही का दूजा नाम
त्रेता युग की मनमोहक छवि घट घट बसे राजा राम
राम नाम संजीवनी ज्ञान सुधा सुख धाम
भोर की पहली किरण है राम, शीतल चाँद की चांदनी राम
राम जगदाता भाग्य विधाता सरल सहज राजा राम
ज्योत जलाई जग को दिखलाई  जीने की राह
सुख त्यागे दुःख भोगे वचन की खातिर महल भी छोड़े
जीवन क्या है राम की माया कभी धूप कभी छाया
राम सत्य है बाकी सब मिथ्या जाने कब समझेगा जग ये लीला

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

बाढ़ ग्रस्त श्वेत नदी

Pic Courtesy -Naiduniya
तन गोरा मन काला
ये मेरे देश की रीत नहीं
मन उजला हो प्रीत भरा हो
बैर से नाता जिसका ना हो
मेरे देश की प्रीत यही
श्याम सुन्दर छवि मोहन की
हर मन में बसती हो जहां
मोरा गोरा रंग लेले मोहे श्याम रंग दे दे
कहती है जहां की नारी सदा
गोरे रंग का मोह वहां कब कैसे चढ़ा
स्वर्ग सी सुन्दर धरती पर
रंग भेद का माया जाल किसने बुना
कब बदली रीत कि मिट गयी प्रीत
जो बह गई श्वेत नदी में
श्वेत नदी की चाह में फंस गए
आज के मोहन सारे
राधा गोरी श्याम भी गोरा
रंग बदल कर चाल बदलना
 नए ज़माने की रीत यही
तन की भक्ति मन की निंदा
आज हमारी पहचान यही
क्यों भूल गए हम
मन उजला हो प्रीत भरा हो
बैर से नाता जिसका ना हो
मेरे देश की प्रीत यही

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

किश्तों में सजा तैयार

dirty politics,Ambitions,hardwork,less work more money and power
Pic courtesy:The Website Geographer

युद्ध सामने से लड़ने की प्रथा पुरानी हो गई
दुनिया में रीत पीठ पीछे साजिशे रचने की हो गई
हंसकर अभिवादन करना,मदद का हाथ बढ़ाना
पलटते ही व्यंग प्रहार करना,साथी को गलत राह दिखाना
नए ज़माने की कितनी सरल प्रीत बन गई
मेहनत का फल मीठा होता है परिभाषा ही बदल गई
मेहनतकश को गिरा कर रास्ता बनाना कालजई तकनीक बन गई
मैं से शुरू होकर जो रास्ते हम बन जाते थे
उन रास्तो के रोड़े बन गए झूठे अहम् के पत्थर
कभी सम्मान की खातिर जान देते थे जो सज्जन
ईमान से बढ़कर उनका ओहदा हो गया है
सबक क्या दोगे नयी पीढ़ी को
वहाँ भी सफलता का मतलब महत्वाकांक्षाओ को पाना है
फर्क किसको पड़ता है मेहनत के फल की मिठास से
हमें तो चाहिए बढ़ते जीरो ज़िन्दगी से बड़े सेविंग अकाउंट में
अपनी बात का बिना बात वजन बढ़ाना
जीवन मूल्यों की लाश पर अपने मैं का घर बनाना
अगर यही दोगे तुम समाज को
सूद समेत किश्तों में सहोगे बदलते मूल्यों का हिसाब
समय है ठहर जाओ सोचो कहाँ गलत हो तुम
वक्त निकलने पर लकीर पीटने से बच जाओ तुम

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

उड़ते परिंदे

fly high to return back

Pic Courtesy: Meri Syahi Ke Rang

जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है
स्वछन्द विचार कितने भी हो
घर की चार दीवारी से टकराते है
पाने को सारा खुला आसमान है
खोने को कुछ गज़ का मकान है

थक कर चूर जब हो जाओ
पंखो को विराम भी दो
पीछे छूटे साथी का इंतज़ार भी हो
लौट आओ जब संध्या हो
उड़ने की कोई वजह ना हो
छोटी सी ज़िंदगानी है
अपनों संग भी बितानी है
जीत के तुम संसार को
हार ना जाना परिवार को

मुट्ठी भर दिन जीवन के
कुछ सपनो में, कुछ उड़ने में
बोलो धरती पर लौटोगे कब
रिश्तो की बगिया में महकोगे कब
जो उन्मुक्त गगन में उड़ते है
वो भी अपने घरों को लौटते है

छोटी सी उम्र में सपने बड़े
जिनसे सीखा उड़ना उनको क्यों कुचल चले
सूरज तक तुमको पहुँचना है
बादल के संग ही उड़ना है
अनुभव और परिश्रम बिन
जीत का फल भी खट्टा है

मंगलवार, 21 मार्च 2017

राम बसे मेरे अंतस में

Ram se bada na koi,Lord Shri Ram














जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे

नैन थके पर वो ना दिखे
दीप जलाये, गीत सुनाये
हर पथ पर एक आस जगाये
सागर से मोती चुन लाए
अम्बर से तारे चुन लाए
फिर भी क्यों ना मेरे राम मिले
जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे

मंदिर छाने महल भी छाने
वन उपवन और ताल भी छाने
मन मंदिर में लगा के ताले
ढूंढ रही मैं  राम को
जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे

उजियारे की किरण दिखी
अंधकार में ज्योत जगी
जिनको ढूंढा घर घर में
राम तो मेरे मन में बसे
जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे

जहाँ राम बसे वहाँ छल ना बसे
निर्मल मन में अमिट छवि बसे
छोड़ दिए सारे लोभ और मोह
पहचान लिया मैंने राम को
जिस घर में मेरे राम बसे
उस घर में मेरे प्राण बसे

गुरुवार, 16 मार्च 2017

क्यों तुम जैसी हो जाऊं


your thought why my thought,individual







Pic Courtesy:The increase woman.com
अगर मैं भी तुम सी हो जाऊ
तो मेरा मुझ में क्या रहा
असर बात का सिर्फ मुलाकात तक रहे
सिमट जाये मेरी शख्सियत तुम में
तो मेरा मुझ में क्या रहा
तेज हवा,आंधी से उखड कर
बस जाऊ कही और
तो मेरा मुझमे क्या रहा
बह जाऊ तेरी बातो के दरिया में
डूब जाऊं तेरे सपनो की दुनिया में
तो मेरा मुझ में क्या रहा
तेरी सोच को बना लू अपनी सोच
दुनिया में कमा लू रत्ती भर नाम
तो मेरा मुझमे क्या रहा
पंख अपने काट दूँ
छोड़ दूँ सारा खुला आसमान
बैठ जाऊ लेकर तेरी ख्वाहिशो का पुलिंदा
तो मेरा मुझ में क्या रहा
तू कहे हाँ तो मैं कहूँ हाँ
तू कहे बैठ और मैं बैठ जाऊं
तो मेरा मुझ में क्या रहा
हर कदम पर साथ चल देना
खुद को तुम में रंग देना
अगर यही किस्मत बना लूँ मैं
तो मेरा मुझ में क्या रहा
इंसान साथ रहे
सोच जुदा हो तो क्या
दिल में प्यार रहे सम्मान रहे
विचार अलग हो तो क्या
अगर में भी तुम सी हो जाऊं
तो मेरा मुझ में रहेगा क्या

बुधवार, 8 मार्च 2017

शक्ति

shakti se anjan,mother earthPic Courtesy:The Goddess Guide to life









ना शब्द बांध सकते है मेरे अहसास की ताकत
ना साँझ रोक सकी मेरी मंज़िलो की सड़क
ना मुश्किलें जान सकी मेरे इरादों की ताकत
ना सुबह ले सकी मेरी ताज़गी की महक
ना वस्त्र ढक सके मेरी खूबसूरती की झलक
ना अम्बर समझ सका मेरी ऊंचाई का महत्व
ना सागर की गहराई समझ पाई मेरे मन की गहराई
ना मेरी राख ही समझा पाई मेरे अपनों को मेरा अस्तित्व
एक धरती का सहारा है जिसने औरत के अस्तित्व को खुद से संवारा है
सहती है बहती है न कहती है बस अपने हर गुण से मेरी कहानी कहती है

सोमवार, 6 मार्च 2017

फ्रेंड्स वर्ल्ड

 PIC Courtesy:Friends Archive
Friends forever,Best friends









 कुछ पल ऐसे भी जीकर देखो
जहाँ साथ हो वो जिन संग खेले हम
बात बात पर हंस देना कभी मचल के हाई फाइव देना
वो लम्हे ज़िन्दगी होंगे या ज़िन्दगी उनमे कुछ खास होगी
कुछ भूली बिसरी यादें ताज़ा होंगी
कुछ नए सपनो की बातें होँगी
कंधे पर हाथ उनका होगा जिन संग बीते बचपन के दिन
कभी हाँ होगी कभी ना होगी
 ज़िन्दगी सिर्फ दोस्तों के संग ज़िन्दगी होगी
जोश को कुछ और बढ़ा देंगे और रोते को हँसा देंगे
दोस्तों संग बीतें ये पल जीवन में खुशियां भर देंगे
पीछे छूटते लम्हो को दोस्तों संग फिर से जी लेंगे
गम का बादल बरसेगा मन का आँगन गीला होगा
खुशियों से सराबोर जीवन होगा
कुछ पल ऐसे भी जीकर देखो
लंबा सूना रास्ता जीवन का
दोस्तों संग छोटा और महका होगा
जब फंस जाओ मंझदार में राह मिलेगी इसी संसार में
यहाँ ना कोई छोटा है किसी से
यहाँ ना कोई बड़ा है किसी से
ये पल ज़िन्दगी की रवानी है
 अटके भटके का किनारा है
जीकर देखो इन लम्हो को
जीवन नया कुछ और रवां होगा
एक आईना होता है हर एक दोस्त
मिटता अक्स फिर उभरेगा
खुशकिस्मत होते है वो लोग
जिन्हें ये पल मिलते है
कुछ पल ऐसे भी जीकर देखो
जहाँ साथ हो वो जिन संग खेले हम

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

एक शहर जो सोता ही नहीं

Pic Courtesy India.com

ek shehar jo sota hi nahi                                                  









इस  शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
ख्वाब बुने जाते है यहाँ..
क्यों इंसान यहाँ सोता ही नहीं
मंज़िल तक पहुंचे कैसे 
रास्ते यहाँ ख़त्म होते ही नहीं 

इस  शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
दौड़ती भागती ज़िन्दगी है 
स्टेशन आए तब भी रूकती ही नहीं 
यहाँ दर्द का घर बनता ही नहीं 
सागर हर ग़म पी जाता है

इस शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
हर घर एक जैसा दिखता है यहाँ 
जगह कम कितनी भी हो घर में
ज़िन्दगी अनेको बसती है वहाँ
अम्बर पर खिले तारों को 
ये शहर ठेंगा दिखलाता है
रात ज़मी पर तारों से सुन्दर जहाँ बसाता है


इस शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
सोना चाहे भी तो मन सोता ही नहीं 
कुछ और पाने के लालच में 
क्यों जीवन की आखिरी सांस में भी 
जीने की वजह बाकी रह जाती है 

इस  शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
मेरे देश का इंजन हो अगर ये शहर 
हर शहर में जान आ जाएगी
रुके हुए कुछ शहरो को 
थोड़ी गति तो मिल जाएगी 

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

खेल अब खेल कहाँ

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Picture Courtesy:Pinterest • The world’s catalog of ideas

गली के नुक्कड़ पर एक मैदान में शुरू हो गई है नयी पारी 
हज़ारो तालियों की गूंज और उस पर बेतहाशा हँसने खिलखिलानें की आवाज़े 
एक खेल, एक उम्मीद, एक ख़ुशी की लहर का आगाज़
दिमाग को थोड़ा सुकून मिलेगा,रग रग में नया उत्साह  दौड़ेगा
जीवन की निराशाओं को दर किनार कर खिलाडी खेलेंगे अपने लिए 
खेल की खूबसूरत भावना के लिए 
देखने वालो की,उनके अपनों की भीड़ के लिए
जिनके चेहरे अजनबी होकर भी अपने लगेंगे 
बॉल की स्पिनिंग सिर्फ हुनर का प्रतीक होगी 
जिसकी कीमत किसी बिडिंग में ना अदा होगी 
बैट का हर शॉट निराशा के अँधेरे से लड़ेगा 
ज़िंदगी मैच के बाद रौशनी से सराबोर होगी
खेल अब बिज़नस बन गया है 
खिलाडी बिक रहे है 
हर उठती तख़्ती खिलाडी की कीमत बढ़ा देती है 
साथ में खेल की भावना को थोड़ा और जला देती है 
खिलाडी आज हिट है  उसका अकाउंट सुपर फिट है 
स्टारडम की हज़ार रोशनियों में भी खिलाडी अंधकार में है 
खेल में अनेक आशाएं, उम्मीदे, नए सपने पनपते है 
ये बात तब की थी जब खेल का अर्थ खेल ही था 







मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

नूर की बून्द

कैसी होंगी वो आँखे जो मेरा आईना बनेंगी
जिन आँखों के उजालों में मेरे अँधेरे फ़ना होंगे 
समंदर सी अथाह उस नयी दुनिया में प्यार के रंग चलन से कुछ जुदा होंगे 
नूर की गिरती उन बूंदो की तलाश में कब से निकले है हम 

बड़ी उलझन है कब कहाँ मिलेंगी वो,जिनका इंतज़ार कितने जन्मों से है 
इशारे तो बहुत मिलते है मगर 
आँखों से बात करे वो मिलता ही नहीं 
सच तो ये है की आजकल कोई आँखों से बात करता ही नहीं

भीड़ में, तन्हाई में किस्सो में, कहानी में एक अक्स उभरता है अक्सर
कहाँ ढुँढू उसकी उन दो आँखों को 
जिनकी ख़ामोशी हमसे बहुत कुछ कहा करती है 
उन आँखों की महकती खुशबू हर ज़माने में बहा करती है 

रूह को  छूती  वो नूर की बून्द मुझे मिल जाये कही 
इससे पहले के डूब जाये दिल की कश्ती 
खुदा अब जल्द मिल जाये उन  आखों का किनारा कहीँ
नहीं तो इश्क़ का मतलब ही समझा दे ज़माने को सही 

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

देखो कोई चुपचाप तो नहीं आस-पास

vo aaj kal chupchap bahut rahta hai,childhood in pain








वो आजकल चुपचाप बहुत रहता है 
सड़क पर पत्थरों से खेला करता है
ट्रैफिक में गुम,हॉर्न से बेपरवाह चला जाता है 
बाहरी चोट से बेपरवाह ,भीतर के दर्द में जिए जाता है 
जो मैंने देखा उसे पास से गुज़रता इंसान क्यों नहीं देख पाता 

वो आजकल चुप बहुत रहता है 
मैदान में उसके दोस्त खुलकर हँसते है 
एक वही किसी कोने में गुमसुम नज़र आता है 
अनेक खिलखिलाहटों में एक उदास चेहरा क्यों छुप जाता है 
मेरी नज़रो ने जो चुप्पी समझी है 
वो दोस्त क्यों नहीं समझ पाते

वो आजकल चुपचाप बहुत रहता है
क्लासरूम में टीचर की आहट से सहम जाता है 
ब्लैकबोर्ड पर फैला उजाला जीवन का अँधेरा कम नहीं कर पाता है 
ख़ामोशी के जाल में फंसा मासूम बहुत घबराता है 
जो मैंने देखा उसे स्कूल का कोई सदस्य क्यों नहीं देख पाता है 

वो आजकल चुपचाप बहुत रहता है 
घर के कमरे में बंद खुद से भी नज़र चुराता है
आईने में खुद अपना अक्स देखकर घबराता है 
खाने की मेज़ पर खाने से रूठा नज़र आता है 
मेरी नज़रो ने जो दर्द समझा
वो माँ -पापा क्यों नहीं समझ पाते है 

वो आजकल चुपचाप बहुत रहता है 
जो बीती उसे खुद में समाये रखना चाहता है 
हिम्मत की जगह कायरता को क्यों चुनता है 
जो हँसता था पेट पकड़कर छोटी छोटी बातो पर 
आज निराश है हताश है चुपचाप है 
वो खुद ये क्यों नहीं समझ पाता है 



बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

माई ओन स्पेस

My Own Space










एक प्रश्न सब पूछते है खुद से 
रिश्तो के भंवर मे घिर कर 
बोलो क्या ढूँढ रहे हो घर मे यहाँ वहाँ
हर वक्त क्यों लगता है कुछ खो गया है कहीँ

एक ज़ंज़ीर का अहसास जब भी होता है 
द्वंद अंतर्मन मे तब चलता है
मेरा भी कुछ था जो खो गया है सरेराह 

कुछ ऐसा जिसने एक अजीब खालीपन से भर दिया है मुझे 
क्यों सहेज कर ना रख सकी उस जगह को जो मेरी अपनी थी 
कोई कहता है ये अतिक्रमण है, कोई त्याग तो कोई बंदिश 

होश आये इससे पहले लुट जाती है बस्ती 
अधिकार सिमट जाते है कर्तव्य बढ़ जाते है 
कुछ समझ आए इससे पहले सपनों के महल बिखर जाते है 

वक्त रहते दिख जाये कश्ती का सुराख़ तो अच्छा है 
डूबने के बाद जाने वाले को पुकारने से अच्छा है 
ज़िन्दगी के सफर में जगह दी है जिनको 
वो ज़िन्दगी में तुम्हे वो जगह दे तो अच्छा है 

जीवन मे कुछ वक्त चाहिए जो सिर्फ अपना हो 
सपनो का हमारे भी तो कहीँ कुछ वजन हो 
खीझ क्यों महसूस हो जीवन मे
घुटन क्यों सहें जीने मे

ये जो थोड़ा सा मेरा अपना वक्त होगा 
ख़ुशी की उसमें हर ख़ुशी से बढ़कर खनक होगी 
निराशा से लड़ने की ताकत मिलेगी
अंधेरे से लड़ने की हिम्मत मिलेगी 

युवा हो वृद्ध हो या वयोवृद्ध 
ये कुछ क्षण सबके अपने होते है
इन लम्हो को आप ख़ुशी का टॉनिक कह सकते है 
हम तो कहेंगे  ज़िन्दगी का "माई ओन स्पेस"







सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

काला चश्मा



मैं ब्रम्हा हूँ जो कहा वही सत्य बाकी सब मिथ्या 
अचरज है ये ब्रम्ह ज्ञान कुछ लोगो को विरासत में मिलता है 
कलयुग में ये ज्ञान काले चश्मे से बहता है 
कुछ यहाँ से सुनो कुछ वहाँ से सुनो फिर मुनादी करो 
मनुष्य का अपना सामर्थ्य और ज्ञान यहाँ आवश्यक नहीं 
सिर्फ चश्मा काला हो तो आकाशवाणी में परम आनंद हो 
आजकल आकाशवाणी फेसबुक पर ज्यादा गूँजती है 
सुरो को ललकारने के लिए असुर शक्ति का प्रयोग 
दूर से फेंके गए इस प्रक्षेपात्र का असर विज्ञापन के साथ
अंदाज़ नया है पर काला चश्मा वही 
काले चश्मे से ना सिर्फ उजाला भी काला नज़र आता है 
बल्कि दिमाग का जाला भी नज़र आता है 
इंसान खुद को ईश्वर तुल्य समझता है अपनों का अनादर करता है 
सच तो ये है पहाड़ी पर बैठा वो भ्रम में जीता है 
ज्ञान की गंगा बहाता है और खुद पानी से भी डरता है (अहम् ब्रम्हास्मि )

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

संवेदनशील हूँ,मनुष्य हूँ

samvedansheel indian,my power my emotions


















मैं भारतीय हूँ गहन संवेदनाओ से ओत प्रोत 
ये मेरी कमज़ोरी है या मेरी ताकत,जानती हूँ 
मेरे साथी मुल्क हमारी मानवीय संवेदनाओ को कितना भी परखे 
मुझे मेरे संवेदन शील होने पर गर्व है 
कही पढ़ा है मैंने जो संवेदना हीन है 
वो मनुष्य नहीं ...
रोमानिया के विषय में पढ़कर जाना एक मैं ही नहीं
संवेदना की नाव में सवार 
कही मेरा कोई साथी भी इस नदी में पतवार का सहारा लिए ज़िंदा है 
हर क्रिया की प्रतिक्रिया में भी इसका भाव  है 
भाव के बिना असर मुमकिन नहीं 
खुद में खुद को महसूस करने की ताकत तो सबको बख्शी है खुदा ने 
गैरो को अनुभव कर सके वही संवेदना से भरा कहला सकता है 
सिर्फ आकृति मनुष्य जैसी होना संवेदना से पूर्ण होने का ध्योतक नहीं 
हिटलर भी तो इसी जाति का हिस्सा था  
इश्क़ की खूबसूरती में भी संवेदना का पुट होता है 
फिर जलन में भी तो एक अहसास ज़िंदा है 
दिल से जुड़ना,महसूस करना ये कब से मनुष्य जाति की पहचान नहीं 
मैं भारतीय हूँ और अब तक मनुष्य हूँ 
गहन संवेदनाओ से ओत प्रोत 

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

और कहानी ख़त्म ...

अनगिनत कहानियां शुरू हुई मेरे आस पास
पात्र ज़िंदा और कहानी हर बार बुझती हुई
कभी धीरे से कुछ सुलगता, भभकता, धुंआ छोड़ता
कुछ समझ आये इससे पहले कहानी फिर राख़ हो जाती

कुछ खंड काल हर कहानी के एक जैसे होते है
बस कही दर्द पहले तो कही बाद में है
कहानी का किरदार सोचता है रुख बदलना मेरे हाथ में है
वो कौन है जो उनके हाथ से डोर उड़ा ले जाता है

बदलते ज़माने के साथ ज्यादातर कहानियां फैशनेबल हो गई
कठपुतलियो के लिबास कुछ कम और ज्यादा रंगीन हो गए
शब्द और ज्यादा कठोर और भाव तो लगभग नदारद ही हो गए
छीन लिया खुद से ज़िन्दगी का आभास जो थोड़ा बहुत बाकी था

आजकल शुरू होते ही कहानियां दम तोड़ देती है
हाथ मिलाकर एक दूसरे से विदा लेती है
छूटे साथी को एक नयी कहानी का पता भी देती है
अब कहानियो में ज़िन्दगी नहीं होती

कहानी की लय, ताल किरदार सब मर चुके है
मृत पात्र किस कहानी को ज़िंदा रख सकते है
कहानी से ऑक्सीजन ख़त्म का अर्थ कितना भयानक है
वीराना पृथ्वी पर इसके उदभव की कहानी कहता है







बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

शून्य की शक्ति


power of zero,zero is equal to infinity










शून्य के आगे उज़ाला है
शून्य के पीछे घना अँधेरा
सियाचिन की ठण्ड में जीवन कहाँ
शून्य से नीचे पारा यहाँ
आर्य भट्ट ने शून्य की खोज की
 जग को मिला उजियारा

उत्पत्ति की खोज को आधार मिला
जब शून्य का जन्म हुआ
क्यों कहती हूँ मैं मुझसे मत मिलो
अभी मैं शून्य में हूँ  क्योकि
आरम्भ पर जाना ज़रूरी है आगाज़ से पहले

जीवन में शून्य ना हो तो आरम्भ कहाँ से हो
अंत अगर शून्य पर ना हो तो मोक्ष कैसे हो
पृथ्वी गोल है और शून्य उसके समानांतर
दिन ढले तो रात हो,रात ढले तो दिन
जीवन ख़त्म होता है और फिर कही किसी का आरम्भ

मंगलवार, 31 जनवरी 2017

ये रंगे पुते चेहरे


fake people,ye range pute chehre














एक उम्र बीत गयी उन लोगो से मिलते जुलते 
जिनके चेहरे पर एक और चेहरा तब से था
जब से मैं खुद से अनजान और उनसे ख़बरदार न थी 

बचपन की अठखेलियां बीती जिन बरामदों में
आज उन घरो के द्वार पर पांव रखने का क्यों मन नहीं 
घर के किसी सदस्य के चेहरे का रंग धुल गया है अब 

शिक्षा के मंदिर में मूर्तियों का रंग भी उजला नहीं है शायद 
नहीं तो अखबारों की सुर्खियां इतनी भयावह नहीं होती 
वो कौनसा दर है मेरे मौला जो रंग छोड़ता नहीं  

एक मुकाम हासिल हो और जीने के लिए कुछ अर्ज़ित हो 
ये सोचकर घर से निकले थे हम 
क्यों वहां भी नज़र आये वही रंगे पुते चेहरे 

हर दर से निराश होकर खुद को समर्पित किया जिस दर पर
हाय क्यों यहाँ भी प्रांगण में रंगों की अनवरत नदी बह रही है 
एक रंग मालिक ने सबको दिया 
फिर क्यों नया चोला स्वार्थवश ओढ़ लिया सबने

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

बाबूजी के जाने के बाद




My Father My strength,babuji ke jane ke bad

हज़ार रोशनियों का शहर आज उदास क्यों है
शहर में आज हर चेहरा दिखता जर्द क्यों  है
क्यों अचानक शिथिल हर आवाज़ लगती है
सुबह की ताज़गी भी बोझिल सी महसूस होती है
अब तो पंछियो की चहचहाट शोर सी प्रतीत होती है
क्यों मेरी आँखों से काजल सुबह से धुला सा है
इन आँखों का सूनापन किस चेहरे को ढूंढता है
बगीचे में जाकर देखा तो फूलो का रंग भी कुछ फीका है
रसोई से बर्तनों का शोर अब गायब है
बस बाबूजी की आवाज़ रह रह कर सुनाई देती है
एक प्याला चाय स्पेशल वाला जरा लाना तो बिटिया
अब  कहेगा कौन मुझसे ये,बाबूजी की छड़ी बताना
बगीचे में कबूतरों का झुण्ड इंतज़ार में है
कौन देगा चुग्गा उनको इतने प्यार से, सम्मान से
प्रश्नों के लगे जब अम्बार और मौन हो गए सारे जवाब
दर्द हद से बढ़ता रहा और दिन के उजाले में फैलता रहा
हज़ारो रोशनियां मद्दम पड़ने लगी और दर्द का आकार बढ़ता रहा
मेरे शहर में किसी के न होने का अहसास कितना गहरा है
अभी तक यहाँ दर्द ने सबको ख़ामोशी से बांध रखा है
आसमान की चादर आंसुओ से भीगी जब तक है
मेरे शहर की हर शय अपनी सी लगती रहेगी
रिश्ता तो एक मेरा खो गया है तारों में
फिर मेरा शहर मेरे साथ भला रोता क्यों हैं