मंगलवार, 5 मई 2009

जिम्मेदार कौन??

कितने और साल यह दुहाई दी जाती रहेगी की अभी वक्त ही कितना हुआ है देश को आजाद हुए ..अभी हम विकासशील देशो की श्रेणी में है..कब तक यह मीठा और धीमा ज़हर जनता को दिया जाता रहेगा की जिसका असर जब दिखाए देने लगे तो ज़हर देने वाले की पहचान ही बदल चुकी हो...सरकार बनने वाले दल का हर व्यक्ति अमीर और विकसित हो जाता है पर जनता का हाल ज्यो का त्यों रह जाता है ..सुधार के नाम पर आश्वासन पा रही जनता को भी संभालना होगा..क्योकि सरकार बनाने का हक ख़ुद को सुरक्षित हाथो में सोपने का हक जनता के पास है और इसका उपयोग अगर सोच समझकर सही नेता के लिए हो गया तो विकास की गंगा को कौन रोक सकता है॥
अपने हक के लिए जनता को सवाल करने का हक तभी है जब हम मतदान की प्रणाली में विश्वास रख कर सोच समझकर मतदान कर एक अच्छे वोटर का कर्तव्य निभाएगे
आज ज़िम्मेदारी से मुह मोड़ने का अर्थ है कल विपतियों का बोझ ढोना॥
आइये प्रण करे कि मतदान करेंगे और सही प्रत्याशी के लिए करेंगे॥

शनिवार, 28 मार्च 2009

भीड़

उत्सव हो या दुर्घटना भीड़ कही भी एकत्रित हो जाती है..पर इस भीड़ का स्वरुप कौन समझ पाया है..यह सैलाब अचानक आता है और छट जाता है ..इस भीड़ ने वक्त बेवक्त इकठ्ठा होकर कभी अपना भला नही किया है ..भला हुआ तो उसका जिसके लिए यह भीड़ जमा हुई..क्यो बिना सोचे हम एक दूसरे के साथ हो लेते है क्यो नही समझ पाते की जो एक कर रहा है ज़रूरी नही वो ही ठीक है ...हमारी अपनी सोच क्या है हमें क्या चाहिए क्या इतना सोचने का भी वक्त नही है हमारे पास॥
विकास कभी किसी के पीछे हो लेने या भीड़ का हिस्सा बनने पर कभी नही हुआ ..उसके लिए ज़रूरत है की हम ख़ुद सोच समझ कर निर्णय ले ..तभी हम देश समाज और परिवार

का भला कर सकते है ॥
हम भीड़ का हिस्सा नही बनेगे ..बल्कि अपनी सोच की ताक़त से ख़ुद अपनी वो जगह बनायेगे जिसमे एकता की ताक़त हो और प्यार का गठबंधन ...
हल्ला बोलना है विकास के लिए ..हक के लिए .. न की भीड़ का हिस्सा बनने के लिए

गुरुवार, 26 मार्च 2009

धर्म

धर्म क्या है किसके प्रति है अब शायद इसकी परिभाषा बदल चुकी है ..बदलते परिवेश मैं सबसे ज्यादा परिवर्तन अगर किसी का हुआ है तो वो धर्म है जिसे हर इन्सान ने अपने छोटे हितों को पुरा करने मे हमेशा उपेक्षित किया है..क्या हम भूल गए है की हमारा कर्तव्य ही हमारा धर्म है देश समाज परिवार और फिर उसके बाद ख़ुद के लिए हम सोचा करते थे विरासत मैं यही सीख मिली थी पर फिर वो कौनसी हवा चली जिसमे धर्म के मायने संहार और सिर्फ़ अपनी ज़रूरतों को पूरा करना सीखा हमने..वो भी किसी और के कंधे पर बन्दूक रखकर

ईश्वर खुदा जिस रूप मैं भी उन्होंने धरती पर जन्म लिया अपना कर्तव्य पूरा किया की कट्टरता बर्बरता मे लिप्त हो अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया ...तो फिर क्यो हम इन्सान जो उस मार्ग पर चलने की बात कह कर आपस मे लड़ते है ...

क्या यही धर्म है तो फिर कभी नही रुक सकता इस shristhi का पतन ...

अभी वक्त है संभलने का सोचने का बदलने का कुछ यु भी कहा जा सकता है अभी नही तो कभी नही

बुधवार, 25 मार्च 2009

बढ़ते कदम

बढ़ते कदमो को अगर मिल जाए सही रास्ता सही मंजिल और थोडी रौशनी तो कौन कहता है ज़मीन पर स्वर्ग बन सकता नही
देश के युवाओ मैं ज़ज्बा वो चाहिए जिसमे कदमो के आगे बढ़ने की आग हो बड़े बुजुर्गो का अनुभव हो तो किस वीराने को गुलज़ार किया जा सकता नही
निराशा को बढ़ते कदमो ने हमेशा पीछे छोडा है ..मंजिलो पर सदा बढ़ते कदमो की सफलता ने परचम सजाया है
याद रहे
कदम बढ़ाना है मंजिल को पाना है

मेरा चुनाव

मेरे वजूद की तलाश की शुरुआत का पहला पड़ाव यानि पहला पन्ना है मेरा चुनाव ..हर तरफ़ लहर है.. गर्मजोशी है.. और बात.. कि कौन सभालेगा देश की बागडोर किस पर विश्वास किया जाए.. कौन हकदार है ..कौन योग्य है जिसे अपना मत दिया जाए
एक एक मत चुनाव करता है सही उमीदवार ..तों क्यो व्यर्थ इसे बर्बाद किया जाए ..ज़रूरत है सही दृष्टी की ..ज्ञान की.. आईये मतदान से पूर्व हम पूरी तरह आश्वस्त हो जाए की जिसे हम चुन रहे है वह उस योग्य है या नही..वह समाज और देश के हित मैं है या नही॥
इसलिए
सुनिए सबकी और चुनिए मन की

वजूद

मैं कौन हूँ क्या हूँ जब जब मैं यह सोचती हूँ मुझे चलता फिरता एक अख्स नज़र आता है जिसकी भीड़ मैं कोई पहचान नही बन पाई है ...कोशिश है इस भीड़ मैं ख़ुद को तलाश करने की अपने वजूद को पाने की उसको सजाने की उसको सवारने की
वजूद मेरा तभी है जब मैं ख़ुद को समाज से जोड़ पाऊ और यही नही अपनी किसी एक अच्छाई से समाज को कोई दिशा दे पाऊ..इस दिशा मे बढ़ने के लिए समाज मैं नया गढ़ने के लिए अपनी आवाज़ से अपने वजूद को तरासतीऔर तलाशती रहूंगी॥
मेरे वजूद को बरक़रार रखने के लिए आपके साथ आपकी सलाह की हर वक्त ज़रूरत होगी ॥

मेरा साथ दे मेरे साथ चले