गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

और कहानी ख़त्म ...

अनगिनत कहानियां शुरू हुई मेरे आस पास
पात्र ज़िंदा और कहानी हर बार बुझती हुई
कभी धीरे से कुछ सुलगता, भभकता, धुंआ छोड़ता
कुछ समझ आये इससे पहले कहानी फिर राख़ हो जाती

कुछ खंड काल हर कहानी के एक जैसे होते है
बस कही दर्द पहले तो कही बाद में है
कहानी का किरदार सोचता है रुख बदलना मेरे हाथ में है
वो कौन है जो उनके हाथ से डोर उड़ा ले जाता है

बदलते ज़माने के साथ ज्यादातर कहानियां फैशनेबल हो गई
कठपुतलियो के लिबास कुछ कम और ज्यादा रंगीन हो गए
शब्द और ज्यादा कठोर और भाव तो लगभग नदारद ही हो गए
छीन लिया खुद से ज़िन्दगी का आभास जो थोड़ा बहुत बाकी था

आजकल शुरू होते ही कहानियां दम तोड़ देती है
हाथ मिलाकर एक दूसरे से विदा लेती है
छूटे साथी को एक नयी कहानी का पता भी देती है
अब कहानियो में ज़िन्दगी नहीं होती

कहानी की लय, ताल किरदार सब मर चुके है
मृत पात्र किस कहानी को ज़िंदा रख सकते है
कहानी से ऑक्सीजन ख़त्म का अर्थ कितना भयानक है
वीराना पृथ्वी पर इसके उदभव की कहानी कहता है