मंगलवार, 29 नवंबर 2016

Boss का सपना

Dream Project,News Channel,First India News Rajasthan,Successful 3 years
समाज के गरीब वर्ग की आवाज़ बनने का सपना देखा
उसे साकार करने का दृढ निश्चय किया और फिर शुरू हुई कठिन यात्रा
पहले पड़ाव का सवाल आखिर जन जन की आवाज़ कैसे बनेगा चैनल
शुरू की प्रदेश यात्रा हर गांव कस्बे में जनता से की बात
एक तरफ सही खबर और जनता का हित और दूसरी तरफ आधुनिकतम चैनल के लिए लेटेस्ट उपकरण की आवश्यकता
मकसद एक ऐसा चैनल तैयार करने का जिसे खुले दिल से अपनाया जाये
चैनल जो किसी व्यक्ति विशेष या समूह का न होकर जनता का हो
जहाँ समस्या उठे तो समाधान के लिए
जहाँ मेरे प्रदेश के लोग बेबाक रख सके अपनी बात
जहाँ व्यर्थ वार्तालाप नहीं प्रगतिशील राजस्थान की हो बात
आगाज़ हो चुका है पर अभी छूना है हमें पूरा आसमान

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

ज़िन्दगी से दूर ज़िन्दगी की ओर

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ज़िन्दगी से दूर  ज़िन्दगी की ओर


और कितनी दूर चलना है अभी..हर कदम पर सांस उखड़ती है जीने की उमंग नहीं बाक़ी ..दर्द घुटनो से ज्यादा कुछ नहीं मिल पाने का है ...मलाल बेटे का भविष्य ना बन पाने का है ..उसकी गृहस्थी ना बस पाने का है ..ख्वाहिशे हज़ार थी जिंदगी से... उधार लेकर जोड़ा भी बहुत कुछ था अब खर्च करने का वक्त लगभग ख़त्म हो गया है पर वो वजह अभी हासिल नहीं हुई..क्यों वास्तविकता जानते हुए भी अपनों के समझाते हुए भी हम ये नहीं समझते पूत कपूत तो क्यों धन संचय पूत सपूत तो क्यों धन संचय ...बेटे का मोह भारत में महिलाओ के अंतस में बसा  है हर कदम पर सबसे बचाते हुए जिस बेटे को वो अपने आँचल में सुरक्षित रखना चाहती है वो कब माँ के साथ आँख मिचोली खेलते हुए ओझल हो जाता है बेचारी माँ समझ ही नहीं पाती..बेटा बड़ा हो गया! उम्र से बड़े दोस्त उसे माँ के सपनो में सजाई दुनिया से दूर ले गए नए शौक नए रंग नया माहौल असर छोड़ गया ..बचपन से सीचें संस्कारो को ये सिगरेट का धुंआ निग़ल गया..

जवान होते पौधे को कीड़ा लग रहा था और माँ तब भी खामोश थी चिंतित थी पर सोचती थी बेटा बड़ा हो गया है अपने बेटे पर ज़रूरत से ज्यादा भरोसा किया और खुद को कई बार परिवार में रुसवा किया पर बेटे का साथ नहीं छोड़ा ..परिवार के दायरे से शिकायते निकलकर मोहल्ले में बढ़ने लगी ...पडोसी की जासूसी खटकती तो है पर बड़े काम की होती है ..इसमें जलन से ज्यादा हित छुपा होता है ये वक्त निकलने पर पता चलता है! पापा बेटे को कंप्यूटर इंजीनियर बनाना चाहते थे तो फीस भरने के लिए खुद को परिवार से दूर कर लिया जो ट्रांसफर वो ज़िम्मेदारियों को निभाने के चलते नहीं लेना चाहते थे उसे बेटे के भविष्य के लिए स्वीकार कर लिया! लाखो की फीस पर पानी फेर कर पिता के क्रोध से बचता बेटा छुप गया एक बार फिर माँ के आँचल में..इस आँचल के सुरक्षा कवच से तो यमराज भी हार मान लेते है पिता ने लाख समझाया माँ ने एक न सुनी! बेटे का भरोसा बढ़ता गया..कामचोरी आलस के साथ इस आँचल में छिप जाना आसान है   यही से भविष्य की सीढियो ने पर्वत की ऊंचाई नहीं लाडले का कुँए में गिरने का रास्ता पक्का कर दिया..हालात बिगड़े  माँ उम्र के आखिरी पायदान पर है बीते वक्त को कोसती है अपने प्यार पर लानत भेजती है और अपने लिए ज़िन्दगी नहीं मौत की दुआए मांगती है उसका बेटा अब ना घर मिलने आता है ना माँ के आँचल में दुनिया से बचने के लिए जगह ढूंढता है...कहाँ है उसका लाड़ला जिसे एक नज़र देखने के लिए माँ अब भी एक और ज़िन्दगी जीना चाहती है पर इस बार दिल में प्यार और हाथ में डंडा रखना चाहती है सिर्फ लाडले के सुखद भविष्य के लिए..

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

स्याही

time never dies time changes











वक्त की स्याही दिखती नहीं, कहती बहुत कुछ है
बीते हर दौर के पन्ने ख़ाली सही, समझाते बहुत कुछ है
धर्म क्षेत्र कैसे बना रण क्षेत्र,अनुभव ग्रंथो में वर्णित है
समय के साथ बनते मिटते साम्राज्यो के किस्से अमिट है
जाँच लो स्याही हर दौर की एक है
वक्त के साथ मिट जाते है अस्तित्व सभ्यताओं के
रह जाते है वक्त की रेत पर निशान स्वतः स्याही के

सोमवार, 21 नवंबर 2016

ये कैसे रिश्ते

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वो जो दर्द देकर चले गए
क्या वो मेरे अपने है
या जो दर्द बनकर साथ जीते है
वो मेरे अपने है
सिर्फ मतलब के लिए मुझको पूछते है वो
दर्द की रात ढलते ही कहते है अब चलते है
बड़े चतुर है रिश्ते सारे
मेरी इंसानियत को बार बार परखते है 

कश्मकश

ज़िन्दगी के वो तार जो मीठी धुनें सुनाते थे वो कब के टूट चुके अब तो हर रोज खट पट की आवाज़ से दिन निकलता और डूबता है...एक गहन उदासी उसके मन में छायी रहती है पंख कटने का अहसास जीने की आरज़ू को ख़त्म करता रहता है और तमाम ऐश ओ आराम के बावज़ूद भी मेरी सहेली माधवी खुश नहीं थी..सुबह के पांच बज चुके है नींद के बाद भी सिर में भारीपन है ...माधवी का चेहरा आँखों के सामने घूम रहा है रात जब उससे मिली थी तो उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे पता नहीं किस हाल में होगी वो ...मन में बड़ी अजीब सी उथल पुथल हो रही थी दिल में बार बार दोस्त की खैरियत जानने की इच्छा थी पर इतनी सुबह फ़ोन करना उचित नहीं लगा और थोड़ा रुकने का फैसला ले मैंने ईश्वर से उसकी सलामती कि प्रार्थना की..खिड़की से पर्दा खीचा तो सूरज कि लालिमा अपना आँचल फैला रही थी बाहर का नज़ारा बेहद सुकून देने लगा कुछ देर वही ठिठक गयी  मन कि तमाम परेशानियों से कुछ राहत मिली ...ठंडी हवा के झोके ने जीने कि नयी ऊर्जा दी ...पक्षियों कि चहचहाट आज कुछ ज्यादा ही अच्छी लग रही थी ...लग रहा था जैसे दिलासा दे रही हो..चलो कुछ तो अच्छा है इस सुबह में ..मम्मी को चाय ठीक छः बजे पीनी होती है और अब तक मैं अपने ही विचारो मैं मगन थी ..जल्दी जल्दी बिस्तर समेटे और बाथरूम कि तरफ भागी...पूजा के बाद मम्मी को चाय पूछने कमरे तक पहुची ही थी कि फ़ोन घंटी बज उठी..घबराहट ने फिर मुझे जकड लिया ..चाय की प्याली माँ को देते ही फ़ोन का रुख किया ...माधवी की आवाज़ भर्रायी हुई थी ..बार बार मिलने की ज़िद कर रही थी बस एक ही बात कह रही थी अब नहीं सहा जाता ...बड़ी मुश्किल से उसको दिलासा दिया और मिलने का वादा कर मैंने फ़ोन रखा

क्या हो गया मेरी हमेशा मुस्कुराते रहने वाली दोस्त को ...आखिर क्यों बार बार मरने की बातें करती है ..कॉलेज के दिन कैसे भूल जाऊ क्लास में हर कॉमपीटीशन में आगे रहने वाली माधवी अब ज़िन्दगी से हार मान रही है..वो लड़की जिसकी एक झलक के लड़के दीवाने हुआ करते थे कॉलेज के बाहर लाइन लगाए रहते थे औऱ वो  स्कार्फ़ लगा कॉलेज से छुप कर निकल जाया करती थी ..कोई लड़का अब तक उसका दोस्त नहीं था ...न जाने कब और कहाँ वो शिशिर से मिली और अपने आप से अलग हो गई ..कॉलेज की पढाई के बाद मैं इंटर्नशिप में बिजी हो गई और माधवी का परिवार  पटना शिफ्ट हो गया ..पहले फ़ोन पर लंबी लंबी चर्चाये होती थी दिन की हर छोटी बड़ी बात हमारी टेलीफोनिक मीटिंग का हिस्सा होती पर न जाने कब ये चर्चाए सिर्फ साप्ताहिक हाय हेल्लो में तब्दील हो गई पता ही नहीं चला..यहाँ तक की  कुछ साल पूरी तरह संपर्क टूट गया ...जिसकी वजह एक नया रिश्ता था जिसकी भनक माधवी ने कभी नहीं लगने दी ..रात माधवी ने जो बताया वो मेरे लिए अजीब इसलिए भी था क्योकि माधवी लड़को से दूर रहा करती थी फिर शिशिर ने कैसे उससे ऐसा रिश्ता बनाया जिसे वो खुद निभाना ही नहीं चाहता था ..ये लड़को की छोटी मोटी मदद और लड़की का उसपर धीरे धीरे  निर्भर होना कितना भयावह हो सकता है ये माधवी से बेहतर कौन जान सकता है ..

पटना मे एक विज्ञापन एजेंसी में माधवी ने पार्ट टाइम जॉब ज्वाइन कर लिया था और यही सेल्स डिपार्टमेंट में शिशिर काम करता था उनकी फीमेल बॉस का टॉर्चर टीम को तोड़ रहा था ...परेशान सेल्स टीम फील्ड में न जाकर चाय की थड़ी पर दिन बिताती और यही हुई मुलाकात माधवी और शिशिर की ...माधवी की सरलता किसी को भी आकर्षित करने के लिए काफी थी नए शहर में एक अच्छे दोस्त की तरह था शिशिर ...ऑफिस की बातें से  पर्सनल बातो का दौर कुछ एक आध महीनो में शुरू हो गया था ..शिशिर के रिश्ते की बात चल रही थी और इधर इन दोनों का रिश्ता आगे बढ़ रहा था ...चाय की थड़ी से मुलाकाते शिशिर के फ्लैट में शिफ्ट हो गयी  ..दोस्त के साथ पार्टनरशिप में लिया था उसने फ्लैट और यही माधवी शिशिर रिश्ता गहरा हुआ ..माधवी ने बताया की मन कचोटता था पर दिल एक न सुनता था और वो बस खिंचती चली गयी ..शिशिर माधवी से अलग नहीं होना चाहता था और तृष्णा को वो माँ पिताजी की वजह से अपनाना चाहता था ...ये कैसा रिश्ता बन रहा था आखिर क्यों में उस वक्त अपनी दोस्त के साथ नहीं थी ...वो आज भी शिशिर को गलत नहीं मानती बस खुद को दोष देती है कहती है जीना नहीं चाहती ...

ग्यारह बजते बजते रोज़मर्रा का  काम पूरा किया ऑफिस फ़ोन करके ना आने की सूचना दी और सीधे माधवी के घर का रुख किया...दरवाज़े की घंटी बजाते हुए हाथ कांप रहे थे की क्या दिलासा दूंगी माधवी को .. इस मोहपाश से मुक्त होने का कौनसा रास्ता दिखाऊ ..दरवाज़ा शिशिर ने खोला था ...जिसकी सिर्फ तस्वीर अभी तक मैंने देखी थी और मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी पर अचानक यूँ माधवी के घर मिलना होगा ये ना सोचा था ...उसकी हाय को इग्नोर करते हुए मैं सीधा माधवी की ओर बढ़ी...वो सोफे पर बैठी थी ..रात को जो माधवी मिली थी उससे बिलकुल अलग ...होठो पर पहले जैसे मुस्कान ..आँखे सूजी हुई थी पर अब इनमे चमक थी...समझ नहीं आ रहा था शिशिर को थैंक यू कहूं या गाली दूँ...पर इस वक्त तो मेरी सहेली की जीने की तमन्ना लौट आयी थी ओर मैं उन पलो को उससे छीनना नहीं चाहती थी ...

क्रमशः .. 

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

रुत बदल गई

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चिकनगुनिया को 500  का नोट निगल गया
 डेंगू को 1000  का नोट ....
हवा कितनी बदल गयी है
वायरस को नोटों की माया ने हवा कर दिया
मोदीजी के छोड़े वायरस ने अमीरो को दिलदार बना दिया
पैसे को जहां तहा से खीच लेने वाला अमीरी  पंप
अब नोट बॉटने की बात करता है
ये नयी रुत क्या गुल खिलाएगी
नोटों के पतझड़ के बाद अब कौनसी बहार आएगी 

रविवार, 13 नवंबर 2016

हमारी फ़िल्मी ज़िन्दगी

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असल ज़िन्दगी में रील लाइफ का असर दिखने लगा है
सीधी सरल तो कभी मुश्किल राह के सफर में
ग्राफिकल इफ़ेक्ट नज़र आ ही जाता है
बातें कम होने लगी है संवाद कुछ ज्यादा
हर गली नुक्कड़ से एंग्री एक्शन की खबरे रोज मिलती है
दोस्तों की मत पूछिये घर मिलने आते नहीं
साथ विदेश घूमने के प्लान बनाते है
एक वक्त था सच्चे हमसफ़र के इंतज़ार में ज़िन्दगी गुज़ार दी जाती थी
अब हर गली में उसका एक आशिक बैठा है
जिसके साथ ज़िन्दगी नहीं सिर्फ कुछ समय बिताने की तमन्ना रहती है
जिन फिल्मो के किरदार इंसान मनोरंजन के लिए गढ़ता था
अब वही किरदार हर इंसान में नज़र आता है

शनिवार, 12 नवंबर 2016

उड़ता पीम

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करेंसी का हाहाकार मचाकर
पीएम उड़ गए विदेश में
कालाबाज़ारी का पता नहीं
आम आदमी मर रहे देश में
काम छोड़कर देश की जनता
बिजी हो गई छुट्टे पैसो में
बैंक कर्मचारी बावले हो गए
इस सारी रेलम पेल में

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

ब्रम्हांड में जीवन संचार

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शून्य में ओमकार का वास
जीवित शरीर में आत्मा का वास
माँ के गर्भ में भ्रूण का वास
तपस्वी के मन में इष्ट का वास
शाश्वत में नश्वर का वास
सत्य में असत्य का वास
ब्रम्हांड में यही है जीवन का संचार