शनिवार, 28 मार्च 2009

भीड़

उत्सव हो या दुर्घटना भीड़ कही भी एकत्रित हो जाती है..पर इस भीड़ का स्वरुप कौन समझ पाया है..यह सैलाब अचानक आता है और छट जाता है ..इस भीड़ ने वक्त बेवक्त इकठ्ठा होकर कभी अपना भला नही किया है ..भला हुआ तो उसका जिसके लिए यह भीड़ जमा हुई..क्यो बिना सोचे हम एक दूसरे के साथ हो लेते है क्यो नही समझ पाते की जो एक कर रहा है ज़रूरी नही वो ही ठीक है ...हमारी अपनी सोच क्या है हमें क्या चाहिए क्या इतना सोचने का भी वक्त नही है हमारे पास॥
विकास कभी किसी के पीछे हो लेने या भीड़ का हिस्सा बनने पर कभी नही हुआ ..उसके लिए ज़रूरत है की हम ख़ुद सोच समझ कर निर्णय ले ..तभी हम देश समाज और परिवार

का भला कर सकते है ॥
हम भीड़ का हिस्सा नही बनेगे ..बल्कि अपनी सोच की ताक़त से ख़ुद अपनी वो जगह बनायेगे जिसमे एकता की ताक़त हो और प्यार का गठबंधन ...
हल्ला बोलना है विकास के लिए ..हक के लिए .. न की भीड़ का हिस्सा बनने के लिए