शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

सब कुशल मंगल तो है !


think about it,village home,peace,life in village,why buildings,clear sky
गांव में हवा के साथ सूकून भी बहता है।
मन मस्तिष्क को फिर एक बार रवां कर लो
यहां निराशा को सूरज की गर्मी पिघला देती है
अब चाहो तो आशाओं से सुलह कर लो
बावड़ी में पानी का स्तर कम ही सही
पर प्यास बुझती है फिर भी सबकी यही
शहर में हजार चीखो
का जवाब नहीं मिलता
यहां सांस की आवाज भी असर दिखाती है ।
गांव में रूह के साथ जीते है सभी
शहर में आत्मा को मारकर आगे बढ़ रहे है सभी
जिन्दा तो शहर मे सारे नज़र आते है
पर गांव में जिन्दगी नज़र आती है 

गांव का घर दुनिया की हर खूबसूरत जगह से सुन्दर है सुबह छत की मुन्डेर से होते हुए सूरज की किरन का मेरे कमरे की खिड़की से अन्दर आना।दूर कही ईश्वर की अरदास में बजती मंदिर की घंटिया सुबह में नयी ऊर्जा भर देती है।पक्षियों की चहचहाहट जो अब बड़े शहरो मे सुनाई देना लगभग खत्म सी हो गयी है।मन को अन्दर तक ताजगी से भर देती है।आज भी जब शहर की भीड़ में गुम होने लगती हूं तो मन गांव की ओर भागता है बड़ी से बड़ी परेशानी से ऊबार देने की ताकत है मेरे गांव के घर मे, फिर क्यों हम शहर बसाते हैं जहां कोलाहल है भागदौड़ है और सबको पीछे छोड़ शहर की सबसे ऊँची इमारत पर घर बनाने की तमन्ना, जहां से आसमान साफ दिखाई दे भाई ये तो गांव के घर से भी साफ दिखता था।एक घर को हटा कर बिल्डिंग बनाना कौनसी समझदारी का काम है इससे बेहतर तो ये होता की कुछ वक्त मैं अपनो के बीच गुजारती  मेरे गांव के घर में जहां सांस की आवाज भी निकलती तो पड़ोसी पूछते सब कुशल मंगल तो है