शुक्रवार, 3 मार्च 2017

एक शहर जो सोता ही नहीं

Pic Courtesy India.com

ek shehar jo sota hi nahi                                                  









इस  शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
ख्वाब बुने जाते है यहाँ..
क्यों इंसान यहाँ सोता ही नहीं
मंज़िल तक पहुंचे कैसे 
रास्ते यहाँ ख़त्म होते ही नहीं 

इस  शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
दौड़ती भागती ज़िन्दगी है 
स्टेशन आए तब भी रूकती ही नहीं 
यहाँ दर्द का घर बनता ही नहीं 
सागर हर ग़म पी जाता है

इस शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
हर घर एक जैसा दिखता है यहाँ 
जगह कम कितनी भी हो घर में
ज़िन्दगी अनेको बसती है वहाँ
अम्बर पर खिले तारों को 
ये शहर ठेंगा दिखलाता है
रात ज़मी पर तारों से सुन्दर जहाँ बसाता है


इस शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
सोना चाहे भी तो मन सोता ही नहीं 
कुछ और पाने के लालच में 
क्यों जीवन की आखिरी सांस में भी 
जीने की वजह बाकी रह जाती है 

इस  शहर से मिलो जो सोता ही नहीं
मेरे देश का इंजन हो अगर ये शहर 
हर शहर में जान आ जाएगी
रुके हुए कुछ शहरो को 
थोड़ी गति तो मिल जाएगी 

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