गुरुवार, 5 जनवरी 2017

बहता वक्त

वक्त कब किसके लिए ठहरता है
जो समय के साथ बहता है गतिमान रहता है
नया चलन नहीं नए शब्द है
वक्त के साथ ना चलने वाला आउटडेटिड हो जाता है
समय की रीत कल भी यही थी आज भी यही है
सदिया गुज़र गई घड़ी की सुई नहीं थमी
 ईश्वर ने पृथ्वी पर जीवन बसाया फिर पक्षियों ने घोसले बनाये
आदि मानव ने कंदराओ से निकलकर शहर बसाये
शून्य से हर बार क्षितिज तक खूब दौड़ लगाई
युग पर युग बीत गए पर समय की मार से ना बच पाया कोई
तभी तो कहते है बड़े बुज़ुर्ग समय कब किसके लिए एक जैसा रहता है
समय तो बहता है और जो उसके साथ चलता है बस वही जीता है

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