मंगलवार, 24 जनवरी 2017

इश्क़ अँधेरे से झांकता रहा

ishq andhere se jhakta raha,no one loves,love
प्यार की गलियों में इश्क़ की जगह नहीं होती 
मैं प्यार का दम भरता रहा, पर इश्क़ न कर सका कभी 
चाँद तारे तोड़कर आँचल मे बिछाना चाहता था 
प्यार के सारे कायदे भूल जाना चाहता था 
इश्क़ को किसी कोने में खड़ा करके
प्यार की हर रस्म निभाना चाहता था 
ज़िद पहाड़ो से टकराने की थी मगर 
क्यों इश्क़ को बेखबर रखना चाहता था 
साथ निभाने के वादे किये, सात छिपकर फेरे लिए 
प्यार मे उसके सफर भी बहुत किये 
इश्क़ से नज़र चुराकर सफर मे साथ निभाने की कसमे भी खाई 
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर उसके सुख दुःख की खबर भी रखी 
प्यार के नाम पर कुछ राज़ खुले घर द्वार मे 
अपनों की कसम लेकर प्यार को रुस्वा किया 
इश्क़ की कब्र भी खोदी प्यार का दम भी भरा 
अपनी नज़र के चोर को दिल के दरवाज़े मे दफन किया 
जहाँ भी रास्ते प्यार की मंज़िल के दिखे
रास्तो पर दर्द की नुकीली झाड़ियां ऊगा दी 
महफ़िलो मे गैरो की प्यार के गीत गुनगुनाते  रहे 
इश्क़ तब भी अँधेरे से झांकता रहा 
प्यार का दम भरने वाले आशिक को निहारता रहा 
वो बेबस था, समझता था, ये इश्क़ नहीं आसाँ

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