गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

हँसना कब से भूल चुके थे हम

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हँसने की एक वजह कहाँ से लाये
रोज रोज की भागम भाग निराशा ही भर जाये
कोई खींचे, कोई पीछे, जीवन अश्को में ही बीते
हँसना कब से भूल चुके थे हम
फिर एक दिन एक चेहरा ढेरो खुशियां लाया
हफ्ते के दो दिनों को उत्सव समान बनाया
ना अभद्र व्यवहार, ना अशिष्ट ही भाषा
भोले से चेहरे ने रोते को भी हँसाया
सीधी सच्ची बातें जीवन में पल में देते उतार
कुछ घंटो में जग में भर देते कपिल जीने की शक्ति अपार

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